0

Chami Murmu of Jharkhand gets Padam shri award, no bangles in hands, soil, shovel, 30 lakhs plantation in 30 years | हाथों में चूड़ियां नहीं, मिट्‌टी, फावड़ा: पेड़ लगाने के लिए माफिया से लड़ी, 500 गांवों में 30 लाख पौधे लगाए, पद्मश्री मिला

  • Hindi News
  • Women
  • This is me
  • Chami Murmu Of Jharkhand Gets Padam Shri Award, No Bangles In Hands, Soil, Shovel, 30 Lakhs Plantation In 30 Years

नई दिल्ली9 दिन पहलेलेखक: संजय सिन्हा

  • कॉपी लिंक

जोहार!

मैं चामी मुर्मू झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले की रहने वाली हूं। अपने पुरखों की विरासत को सहेजने में लगी हूं। पेड़-पौधे, नदी, झरने, तालाब सब मेरे दोस्त हैं।

इनसे बचपन के दिनों से ही प्यार हो गया। जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो पाती हूं कि इनसे दोस्ती निभाते हुए 30 साल से ज्यादा समय हो गए।

खुद पर यकीन नहीं होता कि 30 लाख पौधे लगा चुकी हूं। ये पौधे ‘गाछ’ (पेड़) बन चुके हैं जिनकी जड़ें उतनी ही गहरी होती गई हैं जितना कि मेरा इनके प्रति समर्पण। ताल-तलैया इठलाते हैं, झरने झूमते हैं, कहते हैं कि उन्हें मेरा ही इंतजार है।

कभी सोचा नहीं था कि सरकार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित करेगी। जब 2024 का पद्मश्री देने की घोषणा हुई तो मेरी आंखें छलक उठीं।

मेरे दोस्त मेरे पेड़ भाई कह उठे, ‘बधाई हो चामी! अब तुम्हारी जिम्मेदारी और बढ़ गई। 10 सालों में 10 लाख पौधे और लगा दो और हमारी अपनी दोस्ती को और पक्का बना लो।

दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में मेरी कहानी मेरे दोस्त पेड़-पौधों, ताल-तलैया, झरनों की जबानी सुनिए।

दादा की उंगली पकड़ देखती कि पौधे कैसे लगाते हैं

मेरा जन्म राजनगर की बगराईसाई पंचायत के बुसरा गांव में हुआ। दो भाई और दो बहन, घर में दादा जी भी थे।

दादा जी बताते कि पेड़-पौधे हमारे पर्यावरण के लिए क्यों जरूरी है। हजारों वर्षों से हमारे पुरखे जंगलों को बचाते आए हैं।

मैं उनकी उंगली पकड़ आसपास के इलाकों में जाती और देखती कि वो कैसे पौधे लगाते हैं, उन्हें कैसे सींचते हैं। दादा पेड़-पौधों की देखभाल ऐसे करते जैसे मां मुझे दूध पीने और खाना खाने के लिए देती। यह मुझे भावविभोर करता।

पौधरोपण अभियान को चामी मुर्मू ने जनअभियान का रूप दिया है।

पौधरोपण अभियान को चामी मुर्मू ने जनअभियान का रूप दिया है।

घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में मजदूरी भी की

माता-पिता खेती-किसानी करते। जमीन ठीक-ठाक थी लेकिन खेती सब पर नहीं हो पाती थी। अधिकतर जमीन बंजर रहती, पानी की कमी से सिंचाई नहीं हो पाती। तब गांव में दूसरों के घर मजदूरी करते।

कई बार ऐसी नौबत आती कि मैं भी दूसरों के खेत में धान काटने, निकौनी का काम करती। काम के बदले में पैसे नहीं मिलते थे, बल्कि ‘पयला धान’ मिलता।

उसी से किसी तरह खाने-पीने का प्रबंध हो पाता। 1997 में मेरा छोटा भाई 21 साल की उम्र में चल बसा। कुछ समय बाद पिता भी चल बसे। ऐसे में घर चलाने का भार भाई-बहनों पर आ गया।

पैसे नहीं होने से 10वीं के बाद पढ़ाई आगे नहीं कर पाई

गांव के स्कूल में पढ़ी हूं। तब पढ़ाई पर खर्च न के बराबर था। मैट्रिक तक पढ़ाई की लेकिन आगे पढ़ने के लिए पैसे की जरूरत थी, कमाने वाला कोई नहीं था।

इसलिए आगे नहीं पढ़ पाई। घर की परिस्थिति को देखा-समझा। मां, भाई-बहन की जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करती। इस दौरान कई चुनौतियां आती, लेकिन सबका डटकर मुकाबला करती।

मदर टेरेसा मेरी आदर्श बनीं, शादी नहीं करने का संकल्प लिया

बचपन में किताबों में मदर टेरेसा के बारे में पढ़ा था। तब गांव में टीवी भी नहीं था। उनके बारे में पढ़ती, लोग भी बताते कि मदर टेरेसा समाज के लिए काम करती हैं तो मेरे दिमाग में भी उन जैसा बनने की इच्छा होती। उनके बारे में पढ़कर हिम्मत बढ़ती।

संकल्प लिया कि शादी नहीं करूंगी। शादी होगी तो परिवार से बंधना पड़ेगा, गृहस्थ जीवन में उतरूंगी तो अपने रास्ते से ही भटक जाऊंगी।

2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार लेती चामी मुर्मू।

2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नारी शक्ति पुरस्कार लेती चामी मुर्मू।

1990 से पौधे लगाना शुरू किया, 3 हजार महिलाओं की टीम बनाई

पटौदा में श्रमजीवी संस्थान की ओर से महिलाओं का सम्मेलन चल रहा था। उस मीटिंग में मैं गई। बड़ी संख्या में महिलाएं वहां आईं थीं।

तब यह चर्चा हुई कि क्या हम ऐसा कर सकते हैं। उस समय ‘सामाजिक वानिकी प्रोजेक्ट’ चल रहा था। राजनगर में ही नर्सरी चलती थी।

मैं वहां पौधरोपण की टेक्नीक सीखने जाने लगी। फिर 1990 से मैंने पौधे लगाना शुरू किया। अकेले यह काम संभव नहीं था इसलिए महिलाओं के सेल्फ हेल्फ ग्रुप बनाने लगी।

ऐसा करते-करते 3 हजार महिलाओं की टीम तैयार हो गई। कारवां बढ़ता चला गया। हाथों में चूड़ियां नहीं, बल्कि कुदाल, मिट्‌टी, फावड़ा और पौधे।

झुंड में हम महिलाएं निकलतीं और किसानों की खाली पड़ी जमीन, बंजर पड़ी जमीन, सड़क-नहर के किनारे पौधे लगाती।

हमने ये अभियान सरायकेला जिले के 500 गांवों में चलाया। 30 वर्षों में 720 हेक्टेयर जमीन पर 30 लाख पौधे लगा दिए।

नर्सरी में लगे 1 लाख पौधों को माफिया ने काट कर फेंका

पौधरोपण करना आसान नहीं रहा। कई चुनौतियां आईं। कुछ लोग बोलते कि ये भी कोई काम है।

मेरे काम में रोड़ा अटकाते, सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाओं को बरगलाते। हमने 1997-98 में नर्सरी में 1 लाख पौधे लगाए और माफिया ने रातों-रात नर्सरी के पौधे काट कर फेंक दिए।

तब बड़ा दुख हुआ लोग अच्छे काम को भी बिगाड़ रहे हैं। मैंने शिकायत की तो बदमाश पकड़े गए।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पुरस्कार लेती चामी।

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से पुरस्कार लेती चामी।

लोग ‘लेडी टार्जन’ बुलाते, गांव-गांव में मैसेज गया-पेड़ काटा तो खैर नहीं

सरायकेला-खरसावां के गांवों में मैं पूरी टोली के साथ घूमती। पौधे लगाती, लोगों को पौधे लगाने को प्रेरित करती और साथ में ये चेतावनी भी कि कोई पेड़ों को काटेगा तो उसकी खैर नहीं। लोग मुझे ‘लेडी टार्जन’ बुलाने लगे।

जो पौधे मैंने लगाए उनमें से अधिकतर गाछ यानी बड़े पेड़ बन गए हैं। इन पेड़ों से गांवों में लोगों को जलावन की लकड़ी मिल रही है। कुदाल के डंडे, खटिया, फर्नीचर और घर के लिए लकड़ी मिल रही है। पर्यावरण भी बेहतर हुआ है।

आम-अमरूद जैसे फलदार पेड़ लगे हैं तो जलावन और फर्नीचर के लिए इकोलिप्टस, साल, सखुआ, सागवान, शीशम, नीम जैसे पेड़ भी हैं।

सैकड़ों ताल-तलैया को जिंदा किया, बारिश का पानी सहेजा

मेरा लक्ष्य केवल पौधा लगाना भर नहीं रहा। गांव के लोगों को सिंचाई के लिए भरपूर पानी मिले, इसके लिए बारिश का पानी बटोरना जरूरी थी।

इसलिए रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से बारिश का पानी सहेजने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। सेल्फ हेल्प ग्रुप अपने श्रमदान से चेकडैम तैयार करती।

झारखंड ट्राइबल डेवलपमेंट और नाबार्ड के साथ मिलकर काम किया।

ईचागढ़ ब्लॉक के 35 गांवों, राजनगर ब्लॉक के 47 गांवों में जलस्रोतों को गहरा किया गया।

महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ा

मैं बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हूं लेकिन मैंने अपनी सोच हमेशा आगे रखी। जब तक महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी नहीं होंगी, समाज मजबूत नहीं हो सकता है। इसलिए मैंने ‘सहयोगी महिला’ नाम से एक संगठन बनाया और इसके जरिए महिलाओं के स्वरोजगार के लिए काम करने लगी।

महिलाओं के बैंक में खाते खुलवाती, अलग अलग कामों के लिए लोन दिलवाती।

आदिम जनजाति के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया

बच्चियों की पढ़ाई के बिना जागरूकता नहीं लाई जा सकती। इसलिए दलमा के किनारे चांडिल ब्लॉक से बच्चियों को राजनगर लाती।

2010 से 2018-19 तक इन बच्चियों को पढ़ाती। कक्षा पांचवीं तक ये बच्चियां पढ़तीं। उ‌नके खाने-पीने, रहने की सारी व्यवस्था करती। कई बच्चियों को अपनी जेब से भी पैसे देकर पढ़ाती।

पांचवीं के बाद इन बच्चियों का दाखिला कस्तूरबा विद्यालय में कराया।

इन बच्चियों में आदिम जनजाति की बच्चियां भी पढ़ रही हैं।

4 भाषाएं बोलती हूं, कई पुरस्कार मिले

उड़िया, हिंदी, बांग्ला और अपनी संथाल भाषा बोलती हूं। काम को सम्मान मिलता है तो हर किसी को अच्छा लगता है।

पौधरोपण की शुरुआत के कुछ ही वर्ष बाद इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर राष्ट्रपति ने नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा। पिछले 30 वर्षों में पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिए कई पुरस्कार मिले।

इस वर्ष पद्मश्री का पुरस्कार मिला तो मेरी जिम्मेदारी और बढ़ गई। आज मेरे पेड़-पौधे, झरने-तालाब मेरी सफलती की दुआ कर रहे हैं।

खबरें और भी हैं…

#Chami #Murmu #Jharkhand #Padam #shri #award #bangles #hands #soil #shovel #lakhs #plantation #years #हथ #म #चड़य #नह #मटट #फवड़ #पड #लगन #क #लए #मफय #स #लड #गव #म #लख #पध #लगए #पदमशर #मल