3 घंटे पहलेलेखक: उत्कर्षा त्यागी
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पिछले दिनों एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। ये वीडियो था हापुड़ जिले के SP अभिषेक वर्मा का। कई दिनों से इन्हें बृजघाट से पार्किंग वालों की मनमानी की शिकायत मिल रही थी। इस पर SP सादी वर्दी में खुद बृजघाट पहुंचे और पार्किंग वालों की मनमानी का वीडियो बना लिया। SP अभिषेक वर्मा का बनाया ये वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ।
आज टॉपर्स मंत्रा में अभिषेक वर्मा बताएंगे अपनी UPSC जर्नी और लर्निंग के बारे में…
निरीक्षण के बाद हिरासत में पार्किंगकर्मी।
मैं अभिषेक वर्मा 2016 बैच का IPS ऑफिसर हूं और फिलहाल हापुड़ जिले में SP के रूप में काम कर रहा हूं। 2015 में मैंने UPSC का पहला अटेम्प्ट दिया और पहली ही बार में सिविल सर्विसेज के लिए मेरा सिलेक्शन हो गया।
पिता से मिली प्रेरणा
मैंने इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्युनिकेशन में BTech. किया और उसके बाद UPSC की तैयारी शुरू की। मेरे पिता भी IPS ऑफिसर रह चुके हैं। वो इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस यानी IG के पद से रिटायर्ड हैं। मैं हमेशा उनसे प्रेरित होता था। घर पर माहौल भी था। कहीं न कहीं मैंनें उन्हीं से इंस्पायर्ड होकर पेपर लिखा था। कॉलेज के समय से ही मेरा गोल क्लियर था कि UPSC करना है। किसी प्राइवेट या दूसरी नौकरी के बारे में सोचा ही नहीं कभी।
ऑप्शनल चुनने से पहले अच्छी तरह देखें सिलेबस
ऑप्शनल सब्जेक्ट्स इतने सारे होते हैं, तो उसके बारे में कंफ्यूजन रहता ही है। इसलिए ऑप्शनल चुनते समय सबसे पहले UPSC के सिलेबस को अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए। देखें कि किस टॉपिक से आप खुद को रिलेट कर पा रहे हैं, किस सब्जेक्ट का क्या कंटेंट है।
मुझे भी कंफ्यूजन था शुरुआत में पॉलिटिकल साइंस और पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के बीच में। तब मैंने दोनों ही सब्जेक्ट्स का सिलेबस ढंग से चेक किया और मैं पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन से ज्यादा रिलेट कर पाया। वो मेरा कोई फील्ड नहीं था, मेरा बीटेक का बैकग्राउंड है, लेकिन जब मैंने उसके टॉपिक्स देखे, प्रीवियस ईयर क्वेश्चन्स देखे तो मुझे लगा कि कंफर्टेबल सब्जेक्ट होगा मेरे लिए और मैंने उसको चूज कर लिया।
UPSC की तैयारी शुरू करने से पहले उसके सिलेबस को एक बार ढंग से जरूर देख लें ताकि आपको पता चले कि क्या-क्या आपको कवर करना है और किस-किस फील्ड में आप कम्फर्टेबल हैं।
हॉलिस्टिक अप्रोच के साथ पढ़ें
बात तैयारी की करें तो अगर हम प्री की तैयारी अच्छे से कर लेते हैं तो मेन्स आसान हो जाता है। प्री में कई ऐसे टॉपिक्स हैं जो मेन्स से रिलेटेड हैं। मेन्स की तैयारी करते हैं तो टॉपिक्स आपको डीटेल में पढ़ने होते हैं और उसी टॉपिक को प्री के लिए पढ़ते हैं तो ऑब्जेक्टिवली पढ़ना पड़ता है।
कुछ सब्जेक्ट्स जैसे इकोनॉमी करेंट अफेयर्स से बहुत ज्यादा रिलेटेड होता है। ज्योग्राफी में जियो पॉलिटिक्स से रिलेटेड चीजें पूछी जाती हैं। फैक्चुअल क्वेश्चन्स करेंट अफेयर्स से रिलेट करके पूछे जाते हैं।
आप जो भी टॉपिक पढ़ रहे हैं होलिस्टिक अप्रोच लेकर चलें। इंटरलिंक्ड अप्रोच के साथ पढ़ाई करें। हां, ये जरूर है कि प्री में अपियर हो रहे हैं तो टॉपिक्स को थोड़ा कैजुअली पढ़ सकते हैं क्योंकि आपके सामने ऑप्शन्स आएंगे जिसमें से आपको चुनना होगा। वहीं जब मेन्स के लिए पढ़ रहे हैं तो थोड़ा डीटेल में पढ़ना होगा।
एथिक्स में आइडियल नहीं, रिलेटेबल आंसर लिखें
एथिक्स में केस स्टडीज आती हैं। केस स्टडीज के आंसर इजी टू अंडरस्टैंड हो और रिलेटेबल हो। एक आइडियल आंसर के बजाय एक प्रैक्टिकल आंसर लिखें।
प्रैक्टिकल आंसर का एग्जाम्पल- आपके पास ऑफिस में आपके स्टाफ से रिलेटेड कम्प्लेन आती है कि आपके स्टाफ में से कोई लोगों का काम करने के बदले ब्राइब ले रहा है। तो आप इसे कैसे हैंडल करेंगे?
इसके लिए आप बिल्कुल ऐसे ही सोचें कि आप एक ऑफिसर है और आपको ऐसी कम्प्लेन मिली है। तो डायरेक्टली आप उसको सस्पेंड नहीं कर देंगे या डायरेक्टली उसके बारे में एडवर्स एंट्री नहीं करेंगे। पहले लोगों से रिस्पॉन्स लेंगे, दूसरे ऑफिसर्स और कलीग्स से फीडबैक लेंगे तब जाकर आप किसी नतीजे पर पहुंचेंगे।
लेकिन कभी कभार कैंडिडेट्स क्या करते हैं कि तुरंत कम्प्लेन मिली तो मैं उसके खिलाफ कार्यवाई करूंगा, उसको सस्पेंड कर दुंगा। ऐसे आंसर्स न लिखें। खुद को ये नहीं दिखाना है कि आप ही सबसे ज्यादा ईमानदार है, बल्कि ये दिखाना है कि एक ऑफिसर के तौर पर फैसले लेने का रैशनल तरीका क्या है।
आज के समय में कोचिंग जरूरी नहीं
कोचिंग की जरूरत उनके लिए बहुत है जिन्होंने टॉपिक्स को कभी पढ़ा न हो, उनके बारे में बिल्कुल जानते न हो, लेकिन ऑनलाइन और अन्य माध्यमों की वजह से पढ़ने के इतने सारे माध्यम हैं, ऐसे में कोचिंग की रेलेवेंस कम हो गई है। गांव, देहात या दूर-दराज के इलाकों से आने वाले स्टूडेंट्स, जो दिल्ली या मुखर्जी नगर अफोर्ड नहीं कर सकते, उन्हें भी पढ़ने के लिए ऑनलाइन मीडियम मिल गया है। वो भी अब एग्जाम क्लियर कर रहे हैं।
हां, कोचिंग आपको ये बताती है कि आपको क्या नहीं पढ़ना है क्योंकि जब आप नए-नए तैयारी करना शुरू करते हैं तो आपको लगता है ये भी पढ़ लूं, वो भी पढ लूं। लेकिन कोचिंग में आपको पता चलेगा कि किन टॉपिक्स को छोड़ देना है। कोचिंग के जरिए आपको एक गाइड मिल जाता है। न्यू कमर्स, बिगनर्स को एक गाइडेंस मिल जाती है।
नौकरी के साथ करें तैयारी
बिगनर्स को बहुत कॉन्फिडेंस रहता है, लेकिन जब बार बार फेल होते हैं और कोई जॉब सिक्योरिटी नहीं होती तो ये कहीं न कहीं बहुत डीमोटिवेटिंग होता है। एक राय ये है कि अगर आप ये एग्जाम दे रहे हैं और फैमिली की कंडीशन फाइनेंशियली उतनी अच्छी नहीं है, तो दो अटेम्प्ट के बाद कोई न कोई जॉब जॉइन करें और उसके साथ-साथ एग्जाम की तैयारी करें।
अटेम्प्ट देते रहें क्योंकि इंजीनियरिंग ग्रेजुएट जब कॉलेज से निकलता है तो उसकी वर्थ शुरू के 2-3 साल ही रहती है। जब उसे फ्रेशर कहा जाता है, लेकिन जब वो 3-4 साल एग्जाम की तैयारी के बाद वापस जाता है तो कंपनियां पूछती हैं कि आप कर क्या रहे थे इतने साल।
तब वो चीजों को ढंग से एक्स्प्लेन नहीं कर पाते। आपके पास जब कोई जॉब होगी, तो फेल होने पर भी ज्यादा डीमोटीवेटिंग नहीं लगेगा। दूसरा अगर आपका सिलेक्शन नहीं हुआ 1-2 अटेम्प्ट में तो मुझसे नहीं होगा, सब छोड़ दूंगा, मेरे बसका नहीं है, ये बिल्कुल सोचना ही नहीं है।
पासिंग आऊट परेड देखकर मोटिवेट होता था
मैं IPS ऑफिसर बनना चाहता था। नेशनल पुलिस एकेडमी की पासिंग आऊट परेड मुझे काफी मोटिवेट करती थी। उसे देखकर अंदर से जील, कॉन्फिडेंस और एन्यूजिएस्म आता था कि मुझे भी एक दिन इस परेड का हिस्सा बनना है। मुझे भी इस वीडियो में आना है। आप जिस भी सर्विस के लिए एस्पायर कर रहे हैं, उससे रिलेटेड मूवी देखें, वीडियोज देखें।
बिगर द रिस्क, बेटर द रीप्स ऑफ इट
हमारी कंट्री की पॉपुलेशन इतनी है, इतने सारे एग्जाम्स होते हैं यहां, लेकिन लिमिटेड इंस्टीट्यूशन्स हैं और उनमें लिमिटेड सीट्स हैं। ऐसे में हर फील्ड में रिस्क तो है ही। अगर कोई कोटा जाता है, IIT या मेडिकल की प्रिपेरेशन के लिए और उसका क्लियर नहीं होता तो वो भी ये बोल सकता है कि इसमें बहुत रिस्क है।
लाइफ में कुछ अचीव करना है तो रिस्क लेने पड़ेंगे। द बिगर द रिस्क, द बेटर आर द रीप्स ऑफ इट यानी आप जितना रिस्क लेंगे आपका रिजल्ट भी उसके हिसाब से आएगा, लेकिन एक सेंसिबल अमाउंट ऑफ रिस्क आपको लेना चाहिए, क्योंकि जॉब सिक्योरिटी बहुत जरूरी है। रिस्क हर जगह है, बस आपको कैलकुलेटिव रिस्क लेना है।
UPSC की तैयारी के दौरान IIMC में एडमिशन लिया
UPSC की तैयारी आपको बहुत बड़ा स्किल सेट अवेलेबल कराती है। जैसे प्रिपेरेशन की ड्यूरेशन में मेरे पास वो स्किल सेट आ गया था कि IIMC का एंट्रेंस निकाला। फिर वहां रेडियो एंड टीवी जर्नलिम्ज में एडमिशन भी ले लिया था। अगर वहां कंटीन्यू करता तो अभी जर्नलिज्म कर रहा होता। UPSC में नहीं होता तो वहां कुछ कर रहा होता।
सिलेक्शन से भी ज्यादा खास होता है इंटरव्यू का दिन
किसी भी कैंडिडेटस के लिए एक तो सिलेक्शन का दिन खास होता है, लेकिन उससे भी ज्यादा खास होता है इंटरव्यू का दिन। खासकर जो पहली बार अपियर हो रहे हैं। इंटरव्यू का दिन उनकी लाइफ का एक याद रखने वाला दिन होता है क्योंकि इंटरव्यू वाली जो भी आप सारी किताबें पढ़ते हो, प्रतियोगिता दर्पण या बाकी किताबें, वो सारे मोमेंट्स असली में जीते हो।
बोर्ड मेंबर्स आपके एटीट्यूड, औरा, पर्सनैलिटी को बहुत अच्छे से जज करते हैं। मैंने हॉबीज में लिखा था कि डॉक्यूमेंट्रीज देखना पसंद है तो मुझसे पूछा कि कौन सी डॉक्यूमेंट्री हाल ही में देखी। फिर पूछा कि आपने स्माइल पिंकी नाम की डॉक्यूमेंट्री देखी है तो मैंने हां कहा। फिर मुझसे उसके फैक्ट्स क्रॉस चेक किए। आप पैनल को गुमराह नहीं कर सकते, उनसे झूठ नहीं बोल सकते।
लाइफ का बेस्ट मोमेंट होता है इंटरव्यू
पहली बार इंटरव्यू देने जाते हैं तो बहुत नर्वस हो जाते हैं। फिर बाद में मैंने सिर्फ एक ही चीज सोची कि ये मेरी लाइफ का बेस्ट मोमेंट है। आई हैव टू लिव इट टू द फुलेस्ट। इंटरव्यू को एंजॉय करना है ना कि इसे लेकर स्ट्रेस लेना है। नहीं आता है तो फ्रैंकली बता दीजिए कि नहीं आता। जितना आप खुद को उनसे छिपाएंगे, उतनी आपके लिए दिक्कत होगी।
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