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Dhani should be happy but she was sad, the love that clings to flowers will not flow in the winds this time. | तुम्हारा साथ चाहिए: धानी को खुश होना चाहिए लेकिन वह उदास थी,फूलों से लिपट जाने वाला इश्क इस बार हवाओं में नहीं बहेगा

  • February 12, 2024

5 मिनट पहले

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‘कहते हैं इस मौसम में इश्क हवाओं में बहता है, जर्रे जर्रे में ऐसे छा जाता है। मानो चाहता है कि हर कोई केवल उसकी ही बात करे। सरगोशियां करता इश्क इस मौसम में बेलों की तरह कभी आसमान पर पहुंचने की कोशिश करता है तो कभी जमीन पर फैल अठखेलियां करता है। दरख्तों पर फूलों के गुच्छों के साथ लिपट जाता है। तभी तो इस समय क्यारियों में, प्रकृति के रेशे-रेशे में हर तरफ झूमते मते हुए फूलों की बहार ही नजर आती है। पत्ते तक यों लहराते हैं जैसे साथ में टंगे दूसरे पत्ते का आलिंगन करना चाहते हों।

‘और प्रेम में दीवाने हुए लोग सड़कों पर हाथ में हाथ डाले घूमते नजर आते हैं। किसी पार्क की बेंच पर आंखों ही आंखों में मोहब्बत पढ़ते हुए नजर आते हैं और प्यार भरे नगमे यहां-वहां तैरने लगते हैं। प्रेमी युगल शायद मौसम की खुशबू को महसूस करने के लिए निकलते हैं ताकि अपने प्यार को और ज्यादा में महका सकें। जैसे हम तुम निकले हैं। तभी तो इन दिनों सड़कों पर, बाजारों में, रेस्टोरेंट में, हर जगह भीड़ दिखाई देती है।’

“जानता हूं ऐसा क्यों कह रही हो। वैलेंटाइंस डे जो आने वाला है।“

“और बसंत भी तो छा गया है,” वह हुलस कर बोली। “प्रकृति की रौनक देख रहे हो ना हर तरफ। खेतों में सरसों का सोना चमक रहा है, आम के पेड़ों पर बौर आने लगी है और रंग-बिरंगी तितलियां उड़ते हुए प्यार में डूब जाने का संदेश दे रही हैं।“

“तुम तो कविता करने लगी धानी।“ अबीर ने उसके हाथ को अपनी हथेली का स्पर्श देते हुए कहा।

“प्रकृति का नया श्रृंगार देख दीवानी हुई जा रही हूं और फिर तुम साथ हो तो कविता भी बनेगी और गीतों की गुनगुनाहट भी हवा में घुलेगी। जैसे कोयल की कुहू कुहू की आवाज भवरों के प्राणों को उद्वेलित करती है, वैसे ही तुम्हारी छुअन से मेरे भीतर अनगिनत संगीत लहरिया नृत्य करने लगती है,” धानी ने अबीर की आंखों में झांकते हुए कहा।

अबीर को धानी की आंखों में हमेशा ही प्यार का समुद्र लहराता दिखता है। कोई उससे इतनी मोहब्बत भी कर सकता है, उसने कभी कल्पना तक नहीं की थी। उसने धानी के माथे को चूम लिया।

अबीर कभी-कभी डर जाता है धानी को प्यार से…उसने कसकर उसका हाथ यूं थामा मानो कहीं छूट न जाए उसका साथ। डरता है वह उसे खोने से। इतना प्यार उसे कभी नहीं मिला या कहें कभी प्यार मिला ही नहीं। सौतेली मां ने आते ही पापा का लाड़ भी उससे छीन लिया। मां के गुजर जाने के बाद जो सुरक्षा कवच और उसका साथ हमेशा देने का जो विश्वास पापा ने उसे दिया था, वह सब छिन गया। वह अकेला हो गया था, डरता रहता। जब उसने घर छोड़ा था तो ठान लिया था कि अब किसी पर भरोसा नहीं करेगा। फिर गुलाब की पंखुड़ियों पर मोती सी थिरकती ओस की तरह धानी उसकी जिंदगी में आई और उसके भीतर फैली शुष्कता को धीरे-धीरे नमी से भर दिया।

वह जीने लगा। उसका प्यार पा अविश्वास के दायरे से बाहर निकलने लगा और धानी के साथ-साथ कदम रखते हुए चलने लगा। खुशनुमा हो गई है उसकी जिंदगी… प्यार सचमुच इंसान को बदल देता है। उसके जीवन में रौनकें ले आता है।

“फिर सोचने लगे? नहीं चलेगा अबीर बाबू यह सब मेरे होते हुए। अतीत अगर कचरे की तरह हो तो उसकी जगह डस्टबिन में ही होती है और मेरे ख्याल से डस्टबिन तो है ही तुम्हारे घर में। वह,” वह हंसी। गंभीर से गंभीर बात वह हंसते हुए कह जाती है। अबीर को लगने लगता है कि वह फिजूल में ही बेकार की बातों में उलझा रहता है।

“चलो ना गोलगप्पे खाते हैं,” धानी बोली। “पहले पाव भाजी खा लेते हैं,” वह पाव भाजी के स्टॉल को देखकर बोली। “हम सब कुछ खाएंगे और तब तक खाते रहेंगे जब तक पेट फट न जाए।“ अबीर मॉल के बाहर कतार में बने एक स्टॉल के पास जाकर खड़ा हो गया। उसके बाद वे वहीं बैठ गए फव्वारों के पास बने बेंच पर। धानी ने अबीर के कंधे पर सिर टिका दिया।

“मैं तुमसे कुछ नहीं चाहती सिवाय प्यार के,” वह धीमे स्वर में बोली।

‘’और मैं भी केवल तुम्हारा प्यार ही चाहता हूं,” अबीर ने उसके गाल चूम लिए।

“क्या हम शादी कर लें?”

“अभी तो मेरे पास कोई अच्छी नौकरी भी नहीं है। थोड़ा रुक जाते हैं। गृहस्थी बसाने के बाद और भी बहुत सारी चीज़ें चाहिए होती हैं।“

“मैं तो अच्छी नौकरी कर रही हूं। जब तक तुम्हें ढंग की जॉब नहीं मिलती, मैं घर चलाऊंगी। क्या फर्क पड़ता है घर का सामान लाने के लिए तुम पैसे खर्च करो या मैं,’” धानी बोली।

“जानता हूं। पर मुझे अच्छा नहीं लगेगा और तुम्हारे घरवालों को भी नहीं। एक निकम्मा दामाद उन्हें पसंद नहीं आएगा। यह एक प्रैक्टिकल उपाय नहीं है धानी। कुछ समय रुकते हैं फिर शादी करेंगे,” अबीर ने उसे समझाया।

“मैं भाग कर भी शादी करने को तैयार हूं। अब और नहीं रह सकती तुम्हारे बिना। मुझे हर पल तुम्हारा साथ चाहिए। हफ्ते में एक दो बार मिलना नहीं। मैं चाहती हूं तुम बस मेरी नजरों के सामने रहो।“

“यह तो शादी के बाद भी मुमकिन नहीं होगा। आखिर तुम नौकरी पर तो जाओगी ही’,” अबीर ने ठिठोली की तो

धानी ने उसकी पीठ पर एक मुक्का जमा दिया।

अपने घरवालों के विरुद्ध जाकर धानी ने शादी कर ही ली। सपने चटकीले हो गए। उसके और मन में हमेशा संगीत लहरिया हिलोरें लेने लगीं।

धानी ऑफिस जाती। अबीर घर का काम करता और नौकरी ढूंढता। महीने के अंत तक सारी सैलरी खर्च हो जाती। बाहर घूमना, रेस्टोरेंट में जाना या मनमर्जी शॉपिंग करना… कमी खल रही थी धानी को पर जताना नहीं चाहती थी।

अबीर सब समझ रहा था। कोई छोटी नौकरी करने की बात करता तो धानी ही रोक देती। “थोड़ा इंतजार और कर लो। अपनी योग्यता के अनुसार ही काम करना चाहिए।“

पता नहीं भाग्य साथ नहीं दे रहा था या वक्त…प्यार अभी भी था। पास रहने की ख्वाहिश अभी भी थी, विश्वास था और एक दूसरे की खातिर कुछ भी करने की चाहत भी…लेकिन कुछ था जो धानी के हाथ से फिसल रहा था।

पापा ही उसे कई बार कह चुके थे कि उसने गलत फैसला लिया था। कचोट जाती उसे उनकी बात। आस-पड़ोसी, ऑफिस के लोग भी टिप्पणी कर देते।

फिर वैलेंटाइन के दिन नजदीक आने लगे। हवाओं में इश्क बहने लगा। बसंत अपने सौंदर्य के साथ प्रकृति पर छा गया। धानी खुश नहीं थी। कितनी इच्छाएं दफन कर चुकी हैं। अब सहा नहीं जा रहा। अबीर हमेशा पास रहे, यह ख्याल उसे अभी भी अच्छा लगता था। लेकिन चाय, कॉफी, दाल जैसी चीजें जब खत्म हो जातीं और उनको खरीदने के लिए सैलरी आने का इंतजार करना पड़ता या किराया न चुका पाने के कारण मकान मालिक की बातें सुननी पड़तीं तो मन में कई बार ख्याल आता क्या सचमुच गलत फैसला लिया था।

“मुझे नौकरी तो मिल गई है, लेकिन अभी मैंने हां नहीं बोला। पैकेज अच्छा है और मेरी योग्यता के हिसाब से पोजिशन भी है पर…”

“पर क्या? फौरन हां कर दो,” धानी बोली।

अगले दिन उसने अपॉइंटमेंट लेटर उसके सामने रख दिया। “कल ही जाना है।“

“जाना है? मतलब? कल तो वैलेंटाइन डे है। और वैसे भी मैं तुम्हें दूर नहीं जाने दे सकती कहीं। मुझे हर पल तुम्हारा साथ चाहिए।“

“नौकरी इलाहाबाद में मिली है,” अबीर ने उसकी लटों को पीछे करते हुए कहा।

“फौरन ना कर दो। तुम दूर नहीं हो सकते मुझसे।“ धानी फफक पड़ी। “मैं नहीं कहूंगी कि घर चलाने में परेशानी हो रही है।“

“तुमसे दूर न होना पड़े, इसलिए कई जॉब रिजेक्ट कर दी थीं मैंने। कल ही निकलना है,” अबीर कमरे में जाकर पैकिंग करने लगा।

धानी को खुश होना चाहिए। अबीर को नौकरी मिल गई है। अब उसे अपनी इच्छाओं को दफन नहीं करना पड़ेगा। वह मनमर्जी से जो चाहे खरीद सकेगी।

धानी को खुश होना चाहिए लेकिन वह उदास थी, बहुत उदास… दरख्तों पर फूलों के गुच्छों से लिपट जाने वाला इश्क इस बार हवाओं मे नहीं बहेगा।

-सुमन वाजपेयी

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