नई दिल्ली17 घंटे पहले
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मैं सांत्वना भारती बिहार से हूं। नाम सांत्वना है लेकिन कभी इस बात से संतुष्ट नहीं रही कि लड़कियों के लिए जितना कर लिया वह काफी है। जीवन भर लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई और उनके रोजगार के लिए जूझती रही।
कहीं कोई छेड़खानी या रेप की घटना हुई तो तब तक चैन से नहीं बैठी जब तक अपराधियों को जेल नहीं पहुंचा दिया। गोली मारने की धमकियां मिलतीं लेकिन डरी नहीं। अकेले बिहार के मुजफ्फरपुर में 70-72 लोगों को जेल भिजवाया।
थाने वाले बोलते-सांत्वना के पास जाएं, वहीं कुछ हो सकेगा
मेरा जन्म भागलपुर में हुआ लेकिन कर्मभूमि मुजफ्फरपुर रही। आज से 20-25 साल पहले मुजफ्फरपुर क्राइम के लिए कुख्यात था। छेड़खानी, किडनैपिंग, रेप जैसी घटनाएं बहुत होतीं।
मैं क्राइम के खिलाफ लड़ती। मुजफ्फरपुर में जहां कहीं भी महिलाओं के खिलाफ क्राइम होता मैं पहुंच जाती। पुलिस वाले अपना काम करें या नहीं करें, मैं अपराधियों के पीछे पड़ जाती।
कोई मामला थाने पहुंचता तो पुलिसवाले कहते, टयहां से अपराधियों को पकड़ने कोई नहीं जाएगा, सांत्वना जी के पास जाइए, वहीं से आपको न्याय का रास्ता मिलेगा।’ अपराधी भी खौफ में रहते।
लाश को चिता पर से उठाया, सामने पोस्टमार्टम करवाया
मेरे पिता आईएएस थे। मेरे काम को देखकर कहते कि अच्छा हुआ तुम्हें लाल बत्ती वाली गाड़ी नहीं मिली। अगर मिलती तो या अपराधी तुम्हें गोली मार देते या ट्रांसफर-शंटिंग में ही जिंदगी गुजरती।
पापा की बात सही थी। मैं महिलाओं के खिलाफ अपराध बर्दाश्त नहीं कर सकती।
एक बार पता चला कि सांप काटने से एक लड़की की मृत्यु हो गई। उसे चिता पर जलाया जा रहा था। लेकिन हकीकत में लड़की को दहेज के लिए मारा गया था।
हमने जलती चिता पर से लड़की की लाश को उठाया। अधजली लाश को लेकर अस्पताल पहुंची और अपने सामने पोस्टमार्टम करवाया।
रेपिस्ट को बांध कर रखिएगा, पटना से चल दिए हैं
रामनवमी का दिन था। हर जगह रामनवमी पताकाएं लहरा रही थीं। उस उत्सव के दिन 8 साल की लड़की अपने पिता के साथ सो रही थी। पिता दृष्टिहीन थे।
मुजफ्फरपुर के गांव का ही जेनरेटर चलाने वाला 40 साल का एक व्यक्ति रात के अंधेरे में आया और बच्ची को उठाकर खेत में ले गया। बच्ची के साथ रेप कर वापस उसे पिता के बगल में सुला गया। जब लोगों ने बच्ची को खून से लथपथ देखा तो हल्ला हुआ।
बच्ची ने बताया कि फलां चच्चा हमको उठाकर ले गए थे। तब मैं पटना में थी। लोगों ने फोन कर बताया कि दीदी आ जाइए।
मैंने कहा कि रेपिस्ट को बांध कर रखिए, पटना से मुजफ्फरपुर पहुंच रही हूं।
इस मामले में काफी प्रेशर डाला गया। मैंने बच्ची को अपने घर में रखा। बच्ची को मारने की कोशिश हुई।
तब के जेल मंत्री ने रेपिस्ट को छुड़ाने की भरसक कोशिश की, लेकिन मैं टस से मस नहीं हुई। रेपिस्ट को 10 साल के लिए जेल भिजवा कर मानी।
जेल मंत्री की बेटी को जलाकर मार डाला
दुर्भाग्य से जिन जेल मंत्री ने रेपिस्ट को छुड़वाने की कोशिश की थी उन्हीं की बेटी को ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला। जब यह घटना, उस दौरान वो मंत्री नहीं थे। उन्होंने मुझे फोन पर कहा कि अपराधी पकड़े नहीं जा रहे, थाना भी नहीं सुन रहा है।
ये वही बिहार था जहां रेपिस्ट को नेता बचा लेते और उसका इस्तेमाल करते। मैं अपराध के खिलाफ लड़ती रही। जिस इलाके में काम करती, वहां कई दिनों तक क्राइम नहीं होता था। मुजफ्फरपुर में ही 70-72 कुख्यात बदमाशों को जेल भिजवाया।
कानून की ट्रेनिंग दी
बिहार शिक्षा परियोजना में महिला सामख्या प्रोग्राम चलाया गया। इसका लक्ष्य था लड़कियों को शिक्षा से जोड़ना।
1996 में मैंने बिहार एजुकेशन प्रोजेक्ट में लीगल कंसल्टेंट के रूप में काम शुरू किया। लड़कियों को कानून की ट्रेनिंग देने लगी।
ट्रेनिंग के बाद मैं लड़कियों को कागज देती कि बिना नाम-पता लिखे बताएं कि क्या आपके साथ कभी गलत हुआ है?
कोई भी लड़की ऐसी नहीं होती जिसके साथ कुछ गलत न हुआ हो। कोई बताता कि उसके रिश्तेदार ने उसके साथ ज्यादती की या उसके अपने घर या पड़ोसी ने उसका शोषण किया।
स्त्री मिस्त्री बन पकड़ी करनी
गांवों में घरों में शौचालय नहीं होने से लड़कियां घर के बाहर शौच को जातीं। रेप, किडनैपिंग जैसी घटनाओं के पीछे यह बड़ा कारण थे।
तब मैंने 15 महिलाओं के एक ग्रुप को गुजरात ले जाकर मिस्त्री की ट्रेनिंग दिलवाई। बाद में बिहार के 21 जिलों में 300 महिलाएं मिस्त्री बनीं।
इन महिलाओं ने 70,000 शौचालय बनवाए। तब पूरे बिहार में एक नारा गूंजता-’स्त्री बनी मिस्त्री, घरनी ने पकड़ ली करनी’।
लड़कियों को कराटे सिखाती
मुजफ्फरपुर में ही पहला कस्तूरबा बालिका विद्यालय खुला तो महिला सामख्या में मुझे कस्तूरबा का हेड बनाया गया।
धीरे-धीरे सभी जिलों में कस्तूरबा विद्यालय खुले। मैं 100 कस्तूरबा विद्यालयों को देखती। इन स्कूलों में 10,000 लड़कियों को कराटे की ट्रेनिंग दिलवाया।
मुजफ्फरपुर में एक कार्यक्रम में सांत्वना।
महिलाओं को ई-रिक्शा चलाने की ट्रेनिंग
एक बार पश्चिम बंगाल गई। वहां मैंने महिलाओं को पिंक ई-रिक्शा चलाते देखा। तब मैंने मुजफ्फरुपर में भी ई रिक्शा की ट्रेनिंग शुरू की। पटना और मुजफ्फरपुर में 20 महिलाओं को ई-रिक्शा चलाने की ट्रेनिंग दिलवाई। सभी महिलाएं स्लम बस्ती की थीं।
नारी अदालतें लगातीं
गांव, ब्लॉक और जिला स्तर पर मैंने नारी अदालतें लगवानी शुरू कीं। इन अदालतों का उद्देश्य था महिलाएं अपनी समस्या बताएं। क्राइम हो गया है तो कानूनी कार्रवाई पर काम किया जाए।
नारी अदालत में शिक्षा कमेटी, घरेलू हिंसा, विरोध कमेटी, पंचायती राज कमेटी शामिल होतीं।
महिलाओं को कानून की जानकारी देने के लिए नुक्कड़ नाटक तक किए। रविवार को भाषण, डिबेट होता। कानून याद कराने के लिए गाना बनाती।
2,00,000 महिलाओं को रोजगार से जोड़ा।
स्कूल में बच्चियों के बीच जागरुकता कार्यक्रम चलाती सांत्वना।
महिलाओं को दिलाई सिलाई की ट्रेनिंग
150 महिलाओं को लेकर लुधियाना गई। वहां उन्हें गारमेंट इंडस्ट्री में काम करना था। वहां महिलाओं से केवल बटन लगवाया जाता।
मुझे इससे बहुत चिढ़ हुई। एक धारणा बन गई थी कि महिलाएं सिर्फ ब्लाउज सिल सकती हैं, और साड़ी पिको-फॉल कर सकती हैं।
मैं सोचती कि महिलाएं पैंट-शर्ट, टीशर्ट क्यों नहीं बना सकतीं? मर्द को जन्म देने से भी बड़ा काम है क्या?
मैंने 2019 में एक ट्रेनिंग सेंटर खोला जहां लड़कियों को शर्ट-पैंट, टीशर्ट बनाने की ट्रेनिंग दिलवाती हू्ं।
हम आशियाना बसाएंगे तो महिलाओं का आशियाना उजड़ जाएगा
पटना में मजिस्ट्रेट कॉलोनी में मेरा घर है। पापा बड़े अधिकारी थे। कई बार अपराधी जेल भेजे जाते तो उनके बीवी, बच्चे हमारे घर के गेट पर आ जाते। मनुहार करते कि छोड़ दीजिए, हमलोग सड़क पर आ जाएंगे।
मैं पापा को कहती तो वे कहते कि क्रिमिनल को छोड़ा नहीं जा सकता। तुम बड़ी होना तो इन महिलाओं को मजबूत बनाना। तब से ही महिलाओं को सशक्त करने का जुनून सिर पर सवार है।
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