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In Germany, Juhi had to live in the same room with Sanu, one night both came closer. | परदेस में मिला प्यार: जर्मनी में जूही को शानू के साथ एक ही कमरे में रहना पड़ा, एक रात दोनों करीब आ गए

32 मिनट पहले

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‘खट खट’ तीसरी बार जब दरवाज़े पर ये आवाज़ सुनाई दी तो जूही को कंफर्म हो गया कि कोई तो है दरवाज़े पर। उसने डरते डरते रजाई से मुंह यों बाहर निकाला जैसे रजाई से नहीं किसी सुरक्षित बंद गुफा से सिर निकाल रही हो। “कौन है” उसने बोल्ड आवाज़ में पूछना चाहा पर उसे समझ आ गया कि उसकी अवाज़ डरी हुई ही निकली थी।

“मैं, शानू” संक्षिप्त और आत्मविश्वास से भरा उत्तर। “तो मैं क्या करूं” ये उत्तर जूही के मुंह से अपने आप निकल गया। “दरवाज़ा अंदर से बंद है, खोलिए।” उत्तर सभ्य था पर इतने अधिकार से बोला गया था जैसे जूही का काम दरवाजा खोलना ही है।

जूही सोच में पड़ गई। अगले ही पल उसे लगा कि इस तरह डरकर तो काम नहीं चलेगा। मैं इतनी रात में किसी के लिए दरवाजा नहीं खोलती। मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है।”

बोलने के बाद जूही को सोचने का समय नहीं मिला कि उसकी आवाज में आत्मविश्वास था या नहीं, क्योंकि झल्लाया हुआ जवाब हाज़िर था।

“मैं ‘कोई’ नहीं आपका रूम पार्टनर हूं। और बात करने को कौन कह रहा है। रजाई से नहीं निकलना था तो दरवाज़ा अंदर से बंद ही क्यों किया?”

जूही के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। अब पूरी बात उसके समझ में आ गई थी। उफ! ये उसने क्या कर दिया! अब क्या करे। तो यही बताने की कोशिश कर रही थी लैंड लेडी। इसी के लिए उसके ऑब्जेक्शन होने या न होने की बात पूछ रही थी।

मम्मी की बात याद करके जूही की आंखों में आंसू भर आए। कहा था उन्होंने कि जर्मन भाषा का एक महीने का ही सही, क्रैश कोर्स कर लो। पर नहीं उसे तो लगता था कि मम्मी को क्या पता। वो जानती है कि इंगलिश अच्छी होने से पूरी दुनिया में काम तो चल ही जाएगा।

पर अब और कोई चारा नहीं था। लैंड लेडी टूटी-फूटी इंगलिश में इतना तो समझा ही चुकी थी कि उसे कोई हो-हल्ला नहीं चाहिए। इस पराए देश में किसी और से कुछ भी मदद की उम्मीद भी नहीं थी। लैंड लेडी को लग रहा था कि दोनों एक ही देश के हैं इसलिए एक-दूसरे के साथ अच्छे से एडजस्ट हो जाएंगे। जूही ने दरवाजा खोल दिया।

अंदर घुसते ही शानू नाम के उस लड़के ने उसे सिर से पैर तक घूरकर देखा। फिर पूरे कमरे को देखा, फिर बॉलकनी की ओर… फिर से उसे भरपूर नजर घूरकर बोला, “देखिए, मैं कोई फिल्मी हीरो नहीं, जो जीरो डिग्री के तापमान में सरवाइव कर जाऊं। इसलिए मुझसे बॉलकनी में सोने की उम्मीद मत करिएगा। हां, शरीफ घर का लड़का हूं इसलिए आपका डर कम करने के लिए अपनी मां से बात करा सकता हूं।”

उस अजनबी के इस समाधान पर जूही को हंसी आ गई। उसका डर कुछ हद तक कम हुआ। यही नहीं, एक समाधान भी मिल गया। शानू ने अपने घर फोन लगाया। यात्रा और रूम तक पहुंचने की सारी बातें बताईं। जूही का परिचय भी कराया।

उसके फोन रखते ही जूही ने अपनी मां को वीडियो कॉल लगा दी। कुछ देर बातें करने के बाद जब उसने शानू के खर्राटे सुने तो कब डर भाग गया और कब को आंख लग गई पता ही नहीं चला।

रेस्ट्रां बहुत खूबसूरत था। कुछ पल को तो जूही भूल ही गई कि वो यहां किस काम के लिए आई है। पर तुरंत अंगड़ाई लेते सपनो को डांटकर चुप कराया उसने। मिनी स्कर्ट और कॉलर वाला टॉप पहनकर खुद को निहारा तो खुद पर गुमान हो आया। पर क्या इसी दिन के लिए उसने हाड़ तोड़ मेहनत की थी पढ़ाई? टीस भी कम नहीं थी। पर अपनी भावनाओं के बारे में सोचने का समय ही कब था उसके पास। जूही ने कॉंटैक्ट के मुताबिक मुस्कान ओढ़ी और अपने काम में लग गई।

शाम को पापा की दवाइयां ऑर्डर कीं। आधे घंटे में दवाइयां घर के अंदर थीं और वीडियो कॉल पर मम्मी उन्हें दवाई खाते दिखा रही थीं। ‘मेरी लायक बेटी, मेरी सपूती’ उनकी पलकें छलछला आईं।

ब्रेड लेकर सड़क के किनारे ग्रीनरी में बनी बेंच पर बैठी थी। सूखी ब्रेड खाने के लिए मुंह खोला तो पलकें छलछला आईं। तभी बगल से आवाज आई, “ब्रेड पर मक्खन लगा लीजिए।”

“तुम? मेरा पीछा..”

“जिस रेस्ट्रां के फर्स्ट फ्लोर पर में तुम वेटर हो मैं वहीं सेकेंड फ्लोर पर वेटर हूं।” शानू और जूही कुछ देर एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे। बहुत से संघर्ष, बहुत से टूटे सपने, बहुत से दर्द खामोशी बोलती रही और पलकें सुनती रहीं।

फिर तो जैसे उनके दर्द को, उनके संघर्ष को, उनकी रूह को एक हमसफर मिल गया। बचपन से आज तक का सफर शब्दों में बंधना शुरू हुआ तो रातें तपते रेगिस्तान की छंव बन गईं। घर के हालात एक जैसे थे दोनो के। दोनो ही पढ़ाई में तेज़ थे पर बेरोजगारी के मारे थे।

दोनों को ही जर्मनी में नौकरी मिल गई। नौकरी वेटर की थी, ये दोनों का ही परिवार नहीं जानता था। पर जूही जानती थी कि वो इस नौकरी से अपने पिता की जान बचा सकती है और शानू जानता था कि वो इस नौकरी से अपना गिरवी घर छुड़ा सकता है।

दोनो ही इतने नासमझ नहीं थे कि ये समझते कि केवल वेटर की नौकरी से ऐसा हो जाएगा। पर दोनों के ही दिमाग में आगे के प्लान भी थे। और अब उन पर अमल करने के लिए विचार करने को एक भरोसेमंद साथी भी मिल गया था।

स्ट्रीट के बगल की ग्रीनरी में ड्रम बजाने का ये शानू का पहला दिन था। जूही ने उसका भरपूर साथ दिया। साथ ही किस्मत ने भी तभी तो पहले ही दिन इतनी भीड़ जुटी कि दोनो की पलकों में आंसू छलछला आए।

जल्द ही जूही ने भी गिटार खरीद लिया और शानू को संगत देना शुरू कर दिया। जर्मन भाषा का कोर्स करके ट्रांस्लेशन का काम भी शुरू हो गया।

‘खट..खट..’ “क्या तुमने भी दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनी?” जूही ने शानू से पूछा।

शानू ने उत्तर में उठकर दरवाज़ा खोल दिया। “हाय! तुम यहां?” जूही उछल पड़ी।

“आज नींद नहीं आ रही थी। सोचा तुम्हारे पास चलकर थोड़ी बातें कर ली जाएं” जिमी ने बेफिक्री से कहा।

“पर ये हमारे सोने का समय है। कल करना बातें।”

“जूही, मुझे तुमसे कुछ कहना था। इसीलिए इतनी रात में डिस्टर्ब किया। मुझे लगा कि मैं कल तक कहे बिना नहीं रह सकता। मैं तुमसे प्यार करता हूं। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता।” कहते हुए जिमी घुटनो के बल बैठ गया और एक बेशकीमती उंगूठी निकालकर उसके सामने कर दी। “अगर तुम्हारा जवाब ‘हां’ हो तो कल इसे पहन आना,” कहते हुए जिमी चला गया।

“होटल का मालिक जिमी तुमसे प्यार करता है?” शानू की आंखें खुली रह गईं।

“कबसे?” उसके मुंह से दूसरा सवाल अपने आप निकल गया।

“पता नहीं। बात अच्छे से करता था रोज़ मुझसे। मैं भी अच्छे से बात कर लिया करती थी।”

“वाह, तुम्हारी तो लाइफ सेट हो गई।” शानू ने उसे गर्व से देखा। बदले में जूही ने उसकी आंखों में गहरा झांका। कुछ देर वो उसे तोलने की कोशिश करती रही फिर अंगड़ाई लेते हुए सोने चली गई। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन ऐसा आएगा। पर उसके मन में खुशी क्यों नहीं है! खुशी तो दूर शानू का ऐसा रिऐक्शन देखकर उसका मन टूटता सा क्यों लग रहा है!

क्यों उसे लग रहा है जैसे कुछ टूट गया हो जैसे कल कुछ छूट जाएगा। आखिर जब छटपटाहट हद से बढ़ गई तो वो शानू के बेड पर पहुंच ही गई।

उसे झकझोरते हुए बोली, “तुम ऐसा कैसे कह सकते हो कि मेरी लाइफ सेट हो गई?”

शानू पलटा तो उसका चेहरा देखकर शॉक्ड रह गई। उसका पूरा चेहरा आंसुओं से भरा था। लग रहा था बरसो से रो रहा हो।

अब किसी को कुछ बोलने की जरूरत नहीं थी। खामोशियों की भाषा दुनिया की सबसे सशक्त भाषा अपना काम कर रही थी। ‘मेरी लाइफ तो उसी दिन सेट हो गई थी जिस दिन तुम्हारे जैसे दोस्त की दोस्ती मिली थी’ ये वाक्य भी आंखों ने ही बोला। फिर एक झटके से दोनो एक दूसरे की बाहों में समाए और समाते ही चले गए।

– भावना प्रकाश

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