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Jagjit Singh Interesting Facts; Ghazal, and Chitra Singh Second Marriage | पाकिस्तान में बैन हुई थीं जगजीत सिंह की गजलें: बाल कटवाने पर पिता ने तोड़ा रिश्ता, गजल सुनाते हुए मिली थी बेटे की मौत की खबर

7 मिनट पहलेलेखक: ईफत कुरैशी

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गजल सम्राट जगजीत सिंह की आज 83वीं बर्थ एनिवर्सरी है। कॉलेज में छोटी-मोटी महफिलें लगाकर लोगों की फरमाइश पर गाने सुनाने वाले जगजीत सिंह ने अपने हुनर और मखमली आवाज से गजलों को हिंदी सिनेमा में पहचान दिलाई। चिट्ठी न कोई संदेश………., होशवालों को खबर क्या……….कोई फरियाद…..होठों से छू लो तुम….., ये गजलें जगजीत सिंह की आवाज में आज भी सदाबहार हैं।

जगजीत सिंह की आवाज के जादू का अंदाजा महज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक बार उनकी आवाज में गाना सुनने के लिए एक पायलट ने आधे घंटे तक फ्लाइट लैंड नहीं करवाई। स्वरकोकिला लता मंगेशकर भी जगजीत साहब की इतनी बड़ी प्रशंसक थीं कि उनके हर शो की टिकट खरीदकर उन्हें सुनने जाती थीं।

आज जगजीत सिंह की बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए, उनकी गजलों के मायनों से जुड़े उनकी जिंदगी के किस्से-

गायिकी के चक्कर में फेल हुए जगजीत

8 फरवरी 1941 को जगजीत सिंह का जन्म राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था। सिख परिवार में जन्में जगजीत का असल नाम जगमोहन सिंह रखा गया था। उनके पिता सरदार अमर सिंह धीमन सरकारी लोक निर्माण विभाग में काम किया करते थे। जब उन्होंने देखा कि जगजीत को गाने में रुचि है, तो उन्होंने शौक की कद्र करते हुए उन्हें ट्रेनिंग दिलवा दी। गायिकी में जगजीत इतने मगन हो गए कि उनका पढ़ाई से ध्यान हटने लगा। नतीजा ये रहा कि जगजीत सिंह हर बार फेल होने लगे। ये उनके पिता के लिए चिंता की बात थी क्योंकि वो चाहते थे कि जगजीत या तो इंजीनियर बनें या IAS अफसर।

लाख कोशिशों के बावजूद जब जगजीत सिंह ने पढ़ाई को तवज्जो नहीं दी तो उनका दाखिला जालंधर के DAV कॉलेज में करवा दिया गया। आर्ट्स की डिग्री लेते हुए ही जगजीत सिंह ने गायिकी को ही अपना प्रोफेशन बनाने का फैसला ले लिया।

कॉलेज के कैंटीन में अक्सर जगजीत सिंह की गायिकी सुनने वालों की भीड़ लगा करती थी। जेब में पैसे नहीं रहते थे, तो जगजीत भी चंद गाने गाकर बिना पैसे दिए ही कैंटीन से निकल जाया करते थे। कैंटीन वाला भी अपनी डायरी में उनका हिसाब लिख लिया करता था, लेकिन कभी लेता नहीं था।

जब जगजीत मशहूर गजल सम्राट बने तो एक दिन उनका वही पुरानी कैंटीन जाना हुआ तो वही पुराना मालिक संतोख सिंह मिला। संतोख ने उन्हें वही पुरानी डायरी खोलकर दिखाई जिसमें जगजीत का हिसाब लिखा था। हिसाब में 18 कॉफी का हिसाब बकाया था। जगजीत ने माफी मांगते हुए हिसाब चुकाने के लिए जेब में हाथ डाला तो कैंटीन वाले ने हाथ रोक दिया। कहा आपने पैसे नहीं दिए तो क्या हुआ हमने भी उसके बदले मुफ्त में आपकी गजलें सुनी थीं।

कॉलेज के ऑडिटोरियम में स्टूडेंट ने कहा- हमें इसकी गजल नहीं सुननी

गायिकी की ही बदौलत जगजीत सिंह को ऑल इंडिया रेडियो में नौकरी मिल गई। आगे उन्होंने हुनर निखारने के लिए पंडित छगनलाल शर्मा और उस्ताद जमान खान से संगीत की ट्रेनिंग ली। फिल्ममेकर सुभाष घई कॉलेज के दिनों से ही जगजीत के दोस्त थे। एक बार सुभाष घई ने जगजीत से कॉलेज के प्रोग्राम में गाने को कहा। जैसे ही अनाउंसमेंट हुई कि जगजीत गजल सुनाएंगे तो सामने बैठे लोग हंस पड़े। जैसे ही जगजीत स्टेज पर पहुंचे तो कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें इनकी गजल नहीं सुननी। जगजीत शांति से स्टेज पर आए और उन्होंने गहरी सांस लेकर गजल शुरू कर दी। चंद सेकंड में ही दर्शकों के बीच पहले सन्नाटा छा गया और फिर पूरा ऑडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

दाढ़ी और बाल कटवाए तो पिता ने तोड़ लिया रिश्ता

पढ़ाई पूरी होते ही जगजीत बिना पिता को बताए मुंबई चले आए, क्योंकि वो फिल्मों में गाना चाहते थे। मुंबई आए तो कुछ महीनों तक संघर्ष करना पड़ा फिर उन्हें एडवर्टाइजमेंट में छोटे-मोटे जिंगल का काम मिलने लगा। इसी बीच गानों के लिए जगजीत सिंह कई स्टूडियो के चक्कर काटा करते थे। आखिरकार उन्हें HMV के 2 गाने मिल गए। पहला गाना था साकिया होश कहां था और दूसरा अपना गम भूल गए। गाने की रिकॉर्डिंग पूरी होते ही प्रोडक्शन के लोगों ने जगजीत सिंह की तस्वीरें मांगी। उस समय जगजीत सिंह पगड़ी पहना करते थे। प्रोड्यूसर्स ने कहा कि अगर पगड़ी वाली तस्वीर कवर पर लगा दी, तो लोग उन्हें टिपिकल सिख समझ लेंगे।

गायिकी की दीवानगी इस कदर थी कि जगजीत सिंह ने कवर फोटो के लिए अपनी दाढ़ी और बाल कटवा लिए। उनके पिता नामधारी सिखों को नापसंद करते थे, ऐसे में जब जगजीत सिंह ने पगड़ी हटाई, तो उनके पिता काफी नाराज हुए। जगजीत के इस कदम से उनके पिता ने उनसे रिश्ता तोड़ लिया और बात करना भी बंद कर दिया।

शादीशुदा चित्रा ने किया जगजीत के साथ रिकॉर्डिंग करने से इनकार

स्ट्रगल के दिनों में जगजीत सिंह अकसर ब्रिटानिया बिस्किट कंपनी के ऑफिसर देबू प्रसाद के पड़ोस में रहने वाले गुजराती परिवार से मिलने आते थे। देबू प्रसाद को गानों और रिकॉर्डिंग में इतनी दिलचस्पी थी कि उन्होंने घर में ही एक छोटा सा रिकॉर्डिंग स्टूडियो बना लिया था। लोगों को पता चलने लगा तो कुछ जिंगल्स की रिकॉर्डिंग उन्हीं के घर पर होने लगी। देबू प्रसाद अपनी पत्नी चित्रा और बेटी मोनिका के साथ रहते थे। एक दिन बालकनी में खड़ी चित्रा ने देखा कि जगजीत टाइट सफेद पेंट पहने उनके पड़ोसी के घर जा रहे हैं। चित्रा ने गौर किया कि जगजीत के आते ही पड़ोसियों के घर से गाने की आवाज सुनाई देने लगी। जब जब पड़ोसी चित्रा से जगजीत की तारीफें करती थीं तो वो जवाब में यही कहती थीं कि मुझे इस लड़के की आवाज पसंद नहीं है।

जगजीत सिंह और चित्रा की तस्वीर।

जगजीत सिंह और चित्रा की तस्वीर।

समय गुजरता गया और जगजीत सिंह को जिंगल रिकॉर्डिंग का काम मिलने लगा, वहीं चित्रा भी मशहूर सिंगर हो गईं। एक दिन जगजीत को देबू के रिकॉर्डिंग स्टूडियो में चित्रा के साथ रिकॉर्डिंग करने का मौका मिला, लेकिन चित्रा ने साफ कह दिया, मैं इस भारी आवाज वाले लड़के के साथ रिकॉर्डिंग नहीं करूंगी।

जगजीत ने उन्हें जवाब में कहा, आपकी जरुरत भी नहीं है।

चित्रा नाराज तो हुईं, लेकिन नए लड़के का अमिभान देखकर इंप्रेस हो गईं। रिकॉर्डिंग का सिलसिला चल पड़ा और दोनों में दोस्ती हो गई।

चित्रा के पति से इजाजत लेकर उनसे शादी की, 30 रुपए के खर्चे में हुई शादी

बात 1968 की है, चित्रा के पति देबू प्रसाद ने एक दूसरी महिला के लिए उन्हें छोड़ दिया। देबू नामी शख्सियत थे, तो ज्यादातर लोगों ने उनका साथ देते हुए चित्रा से दूरी बना ली, लेकिन जगजीत सिंह ने अपनी दोस्त का हर कदम पर साथ दिया। जब चित्रा अकेली पड़ गईं, तो जगजीत ने उन्हें शादी के लिए प्रपोज किया।

चित्रा ने जवाब में कहा- मैं पहले से शादीशुदा हूं और अभी मेरा तलाक नहीं हुआ है।

जगजीत ने जवाब में कहा- मैं इंतजार करूंगा।

1969 में देबू और चित्रा का तलाक हो गया और देबू ने दूसरी शादी कर ली। तलाक के बाद एक दिन जगजीत सिंह, देबू प्रसाद के पास पहुंच गए। उन्होंने देबू से कहा कि मैं चित्रा से शादी करना चाहता हूं। उनका साहस देखकर देबू ने भी उन्हें इजाजत दे दी। देबू से इजाजत मिलने के बाद जब जगजीत ने अपने परिवार से इजाजत लेनी चाही, तो हर कोई शादीशुदा और एक बच्चे की मां चित्रा से उनकी शादी करवाने के खिलाफ था। इसके बावजूद दोनों ने कदम पीछे नहीं लिए और 1969 में शादी कर ली। बेटी मोनिका की कस्टडी भी चित्रा के पास ही रही।

बेटे की पैदाइश के बाद चित्रा के साथ बनाई सुपरहिट म्यूजिक एलबम

शादी के एक साल बाद चित्रा ने बेटे विवेक को जन्म दिया। बेटे के जन्म के ठीक बाद जगजीत सिंह और चित्रा ने म्यूजिक एलबम द अन्फॉर्गेटेबल रिलीज की। इस एलबम की गजल बात निकलेगी, तो फिर दूर तलक जाएगी चार्टबस्टर रही। इससे पहले भारत में गजलों के लिए पाकिस्तानी उस्ताद ही पहली पसंद रहा करते थे, लेकिन जगजीत सिंह और चित्रा भारत में गजलों का नया दौर लेकर आए।

बेटे विवेक के साथ चित्रा और जगजीत सिंह।

बेटे विवेक के साथ चित्रा और जगजीत सिंह।

1966 की फिल्म बहूरूपी के भजन लागी राम भजन नी लगानी के बाद, जगजीत सिंह को 1974 की फिल्म आविष्कार में काम मिला था। उनकी द अन्फोर्गेटेबल एल्बम इतनी हिट रही थी कि उसके गाने ‘बात निकलेगी’ को 1976 की फिल्म गृह प्रवेश में इस्तेमाल किया गया। हालांकि जगजीत सिंह को हिंदी सिनेमा में असल पहचान 1981 की फिल्म प्रेम गीत के गाने होठों से छू लो तुम… से मिली।

अगले ही साल 1982 में जगजीत सिंह को तीन फिल्मों के कई गाने मिले। इनमें सबसे बड़ी हिट अर्थ रही, जिसके गाने झुकी झुकी सी नजर…, तेरी खुशबू में बसे खत…, तू नहीं तो जिंदगी में और क्या रह जाएगा.., आज भी सुने जाते हैं। इसी साल रिलीज हुई फिल्म साथ साथ के गाने ये तेरा घर ये मेरा घर… और तुमको देखा तो ये ख्याल आया… भी सदाबहार हैं, जिन्हें जगजीत सिंह ने ही आवाज दी थी। हुनर की बदौलत 80 के दशक में जगजीत सिंह को गजल सम्राट की उपाधि दी गई थी।

पाकिस्तान में बैन हुई थीं जगजीत की गजलें, गाने गए तो जासूसी कराई गई

70 के दशक में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चल रहा था। तनाव के बीच 1979 में जगजीत सिंह को पत्नी चित्रा के साथ एक कॉन्सर्ट के लिए पाकिस्तान बुलाया गया। जैसे ही जगजीत सिंह फ्लाइट में बैठे तो चित्रा ने एक आदमी को देखा, जो उन पर नजर रखे हुआ था। एयरपोर्ट से निकले तो भी वो शख्स उनसे आसपास ही थी।

जब चित्रा ने जगजीत सिंह को बताया, तो उन्हें उस आदमी का बार-बार दिखना खटकने लगा। दोनों पाकिस्तान के होटल में पहुंचे ही थे कि कुछ देर बाद होटल रूम की बेल बजी। दरवाजा खोला तो देखा वही शख्स खड़ा था।

जगजीत ने उस शख्स से पूछा- आप हमारी जासूसी कर रहे हैं?

जासूस ने हामी भरी और बताया कि उसे पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी ने ये काम सौंपा है। आगे उसने बताया कि वो जगजीत सिंह का बहुत बड़ा फैन है, उसने अपने कोट में जगजीत सिंह के लिए एक तोहफा छिपाकर रखा था। वो तोहफा अखबार में लिपटी हुई एक शराब की बोतल थी, क्योंकि जिस होटल में वो ठहरे थे वहां शराब का इंतजाम नहीं था।

पाकिस्तान में जगजीत सिंह का कॉन्सर्ट शुरू होने से पहले ही उनके गाने बैन कर दिए गए। ऐसे में जगजीत सिंह को कॉन्सर्ट करने की इजाजत नहीं मिली। हालांकि पाकिस्तान में उनके चाहनेवालों की तादाद ऐसी थी कि लोगों तक जगजीत सिंह का गाना पहुंचाने के लिए वहां के प्रेस क्लब ने उन्हें न्योता दिया। जगजीत ने प्रेस क्लब के प्रोग्राम में गाना गाया, जिसे सुनने के लिए भारी भीड़ इकट्ठा हुई थी। ये किस्सा राइटर सत्य सरण ने जगजीत सिंह पर लिखी बुक बात निकलेगी तो फिर- द लाइफ एंड म्यूजिक ऑफ जगजीत सिंह में लिखा है। ये किस्सा उन्हें जगजीत सिंह की पत्नी ने सुनाया था।

गजल गाते हुए आई इकलौते बेटे की मौत की खबर

1990 की बात है, जब जगजीत सिंह और चित्रा एक महफिल का हिस्सा बने थे। वो महफिल खत्म होने को थी, जब किसी ने जगजीत सिंह से महफिल के आखिरी गाने की फरमाइश कर दी। थके हुए जगजीत सिंह गाने के मूड में नहीं थे, लेकिन लोगों की फरमाइश टालना उन्हें ठीक नहीं लगा। उन्होंने दबी आवाज में गाना शुरू किया, दर्द से मेरा दामन भर दे। गजल खत्म होते-होते महफिल में तालियों की आवाज गूंज उठी और फिर एक शख्स ने पास आकर जगजीत सिंह से कहा, लंदन में आपके बेटे की एक्सीडेंट में मौत हो गई है। इकलौते बेटे के निधन की खबर ने जगजीत सिंह को बुरी तरह तोड़कर रख दिया।

कुछ दिनों बाद बेटे के शव को जब अंतिम संस्कार के लिए भारत लाया गया तो जगजीत सिंह का बुरा हाल था। अंतिम संस्कार में जब उस महफिल का एक शख्स टकराया तो जगजीत सिंह ने मायूस होकर कहा, उस रात ऊपर वाले ने मेरी दुआ कबूल कर ली, दर्द से मेरा दामन भर दिया।

बेटे की मौत के बाद छोड़ दी गायिकी, महीनों तक सदमे में रहीं चित्रा

बेटे विवेक की मौत के सदमे ने जगजीत सिंह और चित्रा दोनों को अंदर से तोड़कर रख दिया। दोनों ने सदमे में गायिकी से रिश्ता तोड़ लिया। बेटे को खोकर जगजीत डीप डिप्रेशन में थे, लेकिन फिर करीब एक साल बाद जगजीत सिंह ने लता मंगेशकर के साथ म्यूजिक एलबम सजदा से वापसी कर ली, लेकिन चित्रा ने दोबारा कभी न कॉन्सर्ट किया ना कभी किसी गाने की रिकॉर्डिंग।

जगजीत सिंह के कमबैक म्यूजिक एल्बम सजदा के 16 में से ज्यादातर गाने दुखभरे रहे। इस एल्बम में गाना दर्द से मेरा दामन भर दे भी रखा गया था। गम का खजाना तेरा भी है मेरा भी, अल्लाह जानता है, दिल में अब दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं, आंख से दूर नहीं है, सजदा एल्बम का हिस्सा हैं।

लता मंगेशकर भी थीं जगजीत सिंह की फैन

कमबैक एल्बम सजदा में जगजीत सिंह के साथ गाने वालीं लता मंगेशकर उनकी बड़ी फैन थीं। जब भी जगजीत सिंह मुंबई में कॉन्सर्ट करते थे, तो लता मंगेशकर हमेशा टिकट लेकर उन्हें सुनने जाती थीं।

फ्लाइट में जगजीत ने गाना शुरू किया, तो आधे घंटे तक टाली गई लैंडिंग

लहरें रेट्रो की रिपोर्ट के अनुसार, एक बार जगजीत सिंह के गानों के चलते दिल्ली एयरपोर्ट में फ्लाइट की लैंडिंग आधे घंटे बाद हुई थी। दरअसल, जगजीत सिंह ने पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरपोर्ट से दिल्ली की फ्लाइट ली थी। फ्लाइट के स्टाफ ने जगजीत सिंह को देखते ही उनसे गानों की फरमाइश करना शुरू कर दी। जगजीत कभी भी फरमाइश टालते नहीं थे, तो उन्होंने गाना शुरू कर दिया। ये देखते ही पायलट ने दिल्ली के कंट्रोल रूम कॉल कर आधे घंटे तक लैंडिग रोकने की इजाजत मांगी। जगजीत सिंह का वो रुतबा था कि फ्लाइट लैंडिंग रोकने की इजाजत भी दे दी गई। जगजीत सिंह का गाना सुनते हुए लोगों आसमान में ही आधे घंटे बिताए थे।

70 कॉन्सर्ट का वादा अधूरा छोड़ गए जगजीत

साल 2011 में जगजीत ने अपने 70वें जन्मदिन के मौके पर जगजीत ने एक साथ 70 कॉन्सर्ट साइन किए। UK, सिंगापुर और मॉरिशस में सक्सेसफुल कॉन्सर्ट के बाद जगजीत को गुलाम अली के साथ मुंबई में परफॉर्म करना था। इससे पहले ही जगजीत को ब्रेन हेमरेज के चलते लीलावती अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। जगजीत दो महीनों तक कोमा में रहे और फिर उन्होंने 10 अक्टूबर 2011 को दम तोड़ दिया।

जगजीत सिंह को मिले अवॉर्ड

साहित्य कला अकेडमी अवॉर्ड- 1998

पद्म भूषण- 2003

राजस्थान रत्न- 2012

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