0

Lauren Hoeve of Netherland chosen euthanasia suffering from chronic fatigue syndrome | बीमार लड़की ने इच्छामृत्यु चुनी: यूरोप-अमेरिका में इसका ट्रेंड बढ़ा, लोग सुसाइड टूरिज्म के लिए चुनते स्विटजरलैंड; भारत में इजाजत नहीं

  • Hindi News
  • Women
  • Lauren Hoeve Of Netherland Chosen Euthanasia Suffering From Chronic Fatigue Syndrome

नई दिल्ली6 दिन पहलेलेखक: संजय सिन्हा

  • कॉपी लिंक

28 साल की लॉरेन होव ने 24 जनवरी 2024 को अपने ब्लॉग ‘ब्रेन फॉग’ पर लिखा कि 27 जनवरी उनके जिंदगी का आखिरी दिन होगा।

उन्होंने 2022 में ‘यूथनैश्या’ यानी इच्छामृत्यु के लिए आवेदन किया था। तब से वह ‘इच्छामृत्यु की वेटिंग लिस्ट’ में थीं। अनुमति मिलते ही उन्होंने मृत्यु को गले लगा लिया।

लॉरेन क्रॉनिक फैटिग सिंड्रोम (CFS) से पीड़ित थीं जिसे ME यानी ‘माइलजिक एनसेफैलोमाइलिटिस’ भी कहा जाता है।

लॉरेन होव अकेली ऐसी इंसान नहीं है जिन्होंने मृत्यु को गले लगाया बल्कि नीदरलैंड में 2022 में 8,720 लोगों ने इच्छामृत्यु को चुना। यह 2021 के मुकाबले 1,000 अधिक है।

इच्छामृत्यु को चुनने वालों में 75% कैंसर से पीड़ित रहे जबकि अन्य न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, जेरियाट्रिक सिंड्रोम, दिल की बीमारी, गंभीर मानसिक बीमारियों से पीड़ित थे।

यूरोप और अमेरिका के कई देशों में इच्छामृत्यु का ट्रेंड है। जो लोग इसके लिए लीगल तरीके से आवेदन करते हैं वो कई बीमारियों से पीड़ित होते हैं।

ये बीमारियां ऐसी हैं जहां पीड़ित व्यक्ति को जीने की कोई उम्मीद नहीं रहती। हर दिन, हर पल उसे भयंकर दर्द, तकलीफ से गुजरना होता है।

लॉरेन लंबे समय से क्रॉनिक फैटिग सिंड्रोम (CFS) से पीड़ित थीं।

इंडियन साइकेट्रिक सोसाइटी के वाइस प्रेसिडेंट और साइकेट्रिस्ट लक्ष्मीकांत राठी बताते हैं कि CFS बीमारी नहीं बल्कि सिंड्रोम है।

बीमारी किन्हीं कारणों से होती है लेकिन सिंड्रोम में पता नहीं चलता कि किन वजहों से पीड़ित को तकलीफ है।

CFS एक ऐसा कॉम्प्लेक्स मेडिकल कंडीशन है जिसमें पूरे शरीर पर असर पड़ता है।

ये असर किस रूप में होता है इसे ग्रैफिक के जरिए समझते हैं

आराम करने से भी तकलीफ कम नहीं होती

क्रॉनिक फैटिग सिंड्रोम ऐसी समस्या है जो व्यक्ति आलसी बना देती है।

मरीज की कई दिनों तक बेड से भी निकलने की इच्छा नहीं होती। इस सिंड्रोम के शिकार लोग घर में पड़े रहते हैं। रोज के जरूरी काम भी नहीं कर पाते।

इस सिंड्रोम की दूसरी अवस्था में व्यक्ति को बोलने में भी कठिनाई होती है। वह सोच नहीं पाता। उसे स्लिप डिसऑर्डर हो जाता है।

बिस्तर पर लेटने के बाद भी उनके पैर हिलते रहते हैं। किसी तरह सो भी गए तो अचानक उठकर कांपने लगता है। मरीज को डरावने सपने भी आते हैं।

उन्हें रोशनी में आने से डर लगता है। व्यक्ति ठंडा या गर्म चीज छूने से डरता है। हाथ, पैर और चेहरे में जलन महसूस होती है। कुछ भी खाने से एलर्जी होने लगती है।

रह-रहकर एंग्जाइटी और पैनिक अटैक आते हैं। खड़े होने पर भी लड़खड़ाने लगते हैं। शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाते। जीभ को मोड़कर किसी तरह बोलने का प्रयास करते हैं।

लॉरोन होव ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि अंतिम यात्रा को लेकर शोक न प्रकट करें। मैं तो किसी बीच होलिडे पर जा रही हूं। आप मुझे जानते हैं या नहीं, पर आप सभी का शुक्रिया।

लॉरोन होव ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि अंतिम यात्रा को लेकर शोक न प्रकट करें। मैं तो किसी बीच होलिडे पर जा रही हूं। आप मुझे जानते हैं या नहीं, पर आप सभी का शुक्रिया।

खुद को थप्पड़ मारते हैं, ब्लेड से जगह-जगह काटते हैं

नीदरलैंड की ही रहनेवाली 29 साल की औरेलिया ब्रुउर्स ने ‘डार्क पॉइजन’ पीकर जान दे दी। लीगल तरीके से डॉक्टरों ने उसे ‘एसिस्टेड सुसाइड’ करने में मदद की।

औरेलिया जब 12 साल की थीं तब से ही वो डिप्रेशन का शिकार हुई। जब डॉक्टर ने जांच की तो उन्हें ‘बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर’ होने का पता चला।

यही नहीं उन्हें अटैचमेंट डिसऑर्डर, क्रॉनिक डिप्रेशन और एंग्जाइटी होती। उन्हें तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती। कौन सी चीज हकीकत में है और कौन सी काल्पनिक, इसका भेद नहीं कर पातीं। हमेशा सुसाइड करने के विचार आते।

औरेलिया ने 20 से अधिक बार खुद की जान लेने की कोशिश की थी।

औरेलिया ने इच्छामृत्यु के लिए आवेदन देने पर कहा, ‘मैं अपने ही शरीर में फंस गई हूं, अपने ही सिर में अटकी हुई हूं, ऐसा लगता है जैसे किसी पिंजरे में बंद हूं, घुट रही हूं। इसलिए इस शरीर से आजाद होना चाहती हूं।’

बेंगलुरु स्थित NIMHANS के साइकेट्रिस्ट डॉ. वी सेंथिल रेड्‌डी बताते हैं कि बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर (BPD) क्रॉनिक मानसिक बीमारी है जिसमें अधिकतर मरीज खुद को नुकसान पहुंचाते हैं।

खुद को जलाना, ब्लेड से काटना, जलती सिगरेट से अपने ही शरीर को दागना, बिजली का करंट पकड़ना जैसे शिकायतें होती हैं।

कई मरीज ड्रग्स के एडिक्ट हो जाते हैं। ऐसे मरीजों में एग्रेशन देखने को मिलता है। वे आइडेंटिटी क्राइसिस से जूझ रहे होते हैं।

डॉ. रेड्‌डी बताते हैं कि ऐसे मरीजों में से कई ऐसे होते हैं जो बचपन में किसी ट्रॉमा से गुजरे हों।

सेक्शुअल एब्यूज, पेरेंट्स का शराब-ड्रग्स लेना, माता-पिता के रिश्तों में खटास जैसी चीजों के कारण वे ‘बॉर्डरलाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर’ के शिकार हो जाते हैं।

केवल ‘बॉर्डर लाइन पर्सनैलिटी डिसऑर्डर’ ही नहीं बल्कि सिजोफ्रेनिया, साइकोसिस, बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियां भी खतरनाक शक्ल ले लेती हैं जिसमें व्यक्ति अपने जीवन से तंग आ जाता है।

अमेरिकन जर्नल ऑफ साइकेट्री की रिपोर्ट के मुताबिक सिजोफ्रेनिया के 10% मरीज सुसाइड कर लेते हैं। सिजोफ्रेनिया से पीड़ित 65 से 78% लोगों में सुसाइड के विचार आते हैं।

लॉरेन ने अपने ब्लॉग 'ब्रेन फॉग' पर दुनिया से विदा लेने का अंतिम मैसेज लिखा। एक्स अकाउंट पर एक मीम भी पोस्ट किया।

लॉरेन ने अपने ब्लॉग ‘ब्रेन फॉग’ पर दुनिया से विदा लेने का अंतिम मैसेज लिखा। एक्स अकाउंट पर एक मीम भी पोस्ट किया।

सबसे अधिक कैंसर के मरीज इच्छामृत्यु क्यों चुनते हैं, ‘टर्मिनल इलनेस’ क्या है

दुनिया के जिन देशों में असिस्टेड सुसाइड या ‘यूथनैश्या’ की अनुमति है उनमें सबसे अधिक कैंसर के मरीज होते हैं।

इसमें में सबसे ज्यादा फेफड़े के कैंसर के मरीज शामिल हैं। इसके बाद ब्रेस्ट कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर और कोलोरेक्टल कैंसर के मरीज आते हैं।

कैलिफोर्निया में एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ. यामिनी रणछोड़ बताती हैं कि कैंसर के ऐसे मरीज जो टर्मिनेल फेज में होते हैं उनका कोई इलाज नहीं है।

यह कैंसर के एडवांस्ड स्टेज से अलग है। कोई कैंसर के चौथे स्टेज में है या एडवांस्ड स्टेज में है तो उसे ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन मरीज की परेशानी को थोड़ा कम जरूर किया जा सकता है।

लेकिन टर्मिनल कैंसर का इलाज नहीं हो सकता इसलिए इसे ‘एंड स्टेज कैंसर’ भी कहते हैं।

किसी भी तरह का कैंसर टर्मिनल कैंसर बन सकता है। टर्मिनल कैंसर के मरीज पर किसी ट्रीटमेंट का कोई असर नहीं होता।

नोएडा स्थित सेंटर ऑफ हेल्थ इनोवेशन एंड पॉलिसी के फाउंडर और कैंसर स्पेशियलिस्ट डॉ. रवि मेहरोत्रा बताते हैं कि कोई भी बीमारी टर्मिनल इलनेस बन सकती है।

टर्मिनल इलनेस का मतलब है कोई भी ऐसी बीमारी जो चरम सीमा पर पहुंच जाए और जिसका इलाज असंभव है।

एडवास्ड कैंसर ही नहीं, डिमेंशिया, अलजाइमर, मोटर न्यूरॉन डिजीज, फेफड़े की बीमारी, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसै पार्किन्सन या एडवांस्ड हार्ट डिजीज जैसी बीमारी भी टर्मिनल इलनेस बन जाती है।

‘सुसाइड टूरिज्म’ के लिए स्विटजरलैंड को चुन रहे

नीदरलैंड ही अकेला देश नहीं हैं जहां इच्छामृत्यु का ट्रेंड बढ़ा है। बल्कि बेल्जियम, लैक्जमबर्ग, कनाडा, कोलंबिया, स्विटजरलैंड जैसे देशों में ‘यूथनैश्या’ और एसिस्टेड सुसाइड को लोग चुन रहे हैं।

अमेरिका के कई राज्यों जैसे कैलिफोर्निया, कोलोराडो, हवाई, न्यू जर्सी, ओरेगाव, वाशिंगटन स्टे, वरमॉन्ट और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया में लोगों को अपनी इहलीला खत्म करने की अनुमति दी जाती है।

जिस स्विटजरलैंड को प्रकृति की खूबसूरती और सैलानियों के लिए जाना जाता है वहां लोग कानूनी तरीके से मृत्यु को गले लगाने पहुंचते हैं।

‘डिग्नीटास’ नामक संस्था की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में 221 लोग असिस्टेड सुसाइड के लिए स्विटजरलैंड पहुंचे जिसमें से 87 जर्मनी से, 31 फ्रांस से और 24 यूके से थे।

बच्चे भी चुनते इच्छामृत्यु, बेल्जियम में कोई उम्र सीमा नहीं

नीदरलैंड में 12 साल की उम्र का कोई बच्चा भी कानूनी तरीके से अपनी मृत्यु की तारीख चुन सकता है।

हालांकि 16 साल के नीचे की उम्र के बच्चों के लिए माता-पिता की सहमति जरूरी है। अगर बच्चे को गंभीर और लाइलाज बीमारी है तो बेल्जियम में बच्चे को इच्छामृत्यु लेने की आजादी है।

जहर पीना सबसे कठिन, इसलिए लोग इंजेक्शन अधिक चुनते हैं

रीजनल ‘यूथनैश्या’ रिव्यू कमिटी ने 2017 में रिपोर्ट में बताया कि इच्छामृत्यु के 6,585 मामलों में 96% ने जहर के इंजेक्शन लगवाए।

जबकि 4% ने ही असिस्टेड सुसाइड को चुना यानी खुद से जहर पीकर अपनी जान दी। इसमें सबसे अधिक कैंसर के मरीज थे।

‘यूथनैश्या’ में डॉक्टर या कोई दूसरा व्यक्ति पीड़ित के मरने में मदद करते हैं। अगर उसे पीड़ित खुद इसका आग्रह करता है तो इसे वॉलंटियर ‘यूथनैश्या’ कहते हैं।

जबकि असिस्टेड सुसाइड में मरीज को जहर की शीशी दी जाती है। मरीज खुद से जहर पीता है। चूंकि इसका स्वाद बर्दाश्त करने लायक नहीं होता इसलिए ‘यूथनैश्या’ के मुकाबले लोग इसे कम चुनते हैं।

महिलाओं में मानसिक बीमारियां अधिक, बुजुर्ग कपल इच्छामृत्यु ले रहे

नीदरलैंड सहित कई देशों में ‘द एंड ऑफ लाइफ’ क्लीनिक का चलन है। इनमें सबसे अधिक मानसिक बीमारियों से पीड़ित महिलाएं पहुंचती हैं। पुरुषों के मुकाबले उनमें CFS 4 गुना अधिक देखने को मिलता है।

2021 में इस क्लीनिक में 379 बुुजुर्गों ने लीगल तरीके से अपनी जान दी। इनमें से 58 बुजुर्ग पति-पत्नी थे जो कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे और उन्हें जीने की कोई आस नहीं बची थी।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

नॉलेज बढ़ाने और जरूरी जानकारी देने वाली ऐसी खबरें लगातार पाने के लिए डीबी ऐप पर ‘मेरे पसंदीदा विषय’ में ‘वुमन’ या प्रोफाइल में जाकर जेंडर में ‘मिस’ सिलेक्ट करें।

खबरें और भी हैं…

#Lauren #Hoeve #Netherland #chosen #euthanasia #suffering #chronic #fatigue #syndrome #बमर #लडक #न #इचछमतय #चन #यरपअमरक #म #इसक #टरड #बढ़ #लग #ससइड #टरजम #क #लए #चनत #सवटजरलड #भरत #म #इजजत #नह