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- The Mother Was Beaten While Pregnant, Everyone Said To Abort The Child Or Sell It, The Landlady Said To Do Business And Pay The Rent.
2 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर
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नमस्ते दोस्तों….
मेरा नाम गीतांजलि है। जब 4 साल की थी तो पापा दुनिया छोड़कर चले गए। मां अकेली पड़ गईं उनके पास मेरी परवरिश के लिए पैसा तक नहीं था। मां ने सोचा कि वो मुझे अनाथ आश्रम में डाल दें क्योंकि वो डरती थी की वो मुझे अकेले कैसे पालेंगी। जिंदगी के 12 साल अनाथ आश्रम में गुजरे। मेरी पढ़ाई- लिखाई सब वहीं से हुई।12वीं पास करने के बाद जब मैं 18 साल की हुई तो हमें अनाथ आश्रम से मां के पास वापस भेज दिया गया।
मां का घर नर्क लगता
अनाथ आश्रम से वापस मां के घर शिफ्ट होना मेरे लिए मुश्किलों भरा सफर रहा। मां का घर मुझे नर्क लगता था। वो मुझसे सारा दिन काम कराती और शादी करने का दबाव बनाती, लेकिन मैं इतनी जल्दी शादी के लिए तैयार नहीं थी। मैं फैशन डिजाइनिंग कर कोर्स करना चाहती थी। मैंने मां से कहा मुझे फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना है, लेकिन मां को लगता था की ये तो दर्जी का काम है इसके लिए कोर्स करने की क्या जरूरत है। मेरे लाख समझाने पर भी जब मां नहीं समझीं तो मैंने उनसे कहा कि वो मेरा सिर्फ एक महीना साथ दें बाकी मैं खुद कोई न कोई काम करके इस कोर्स को पूरा कर लूंगी। मां मान गई।
रात सड़क पर ही गुजारनी पड़ी
फैशन डिजाइनिंग का कोर्स शुरू किया। सुबह क्लास करती दिन में मैं रिसेप्शनिस्ट का काम करती। मेरी पहली सैलरी 8 हजार रुपए आई जो उस वक्त मेरे लिए बहुत थी। मैंने उन पैसों से सबसे पहले रूम रेंट भरा और 2 महीने की कोर्स की फीस भरी।
एक दिन रूम का किराया समय पर न देने की वजह से मकान मालिक ने मुझे रात में ही धक्के मारकर घर से निकाल दिया। जिसके बाद मुझे पूरी रात सड़क पर ही गुजारनी पड़ी। सिलसिला जारी रहा कभी रेंट दे पाती तो कभी नहीं। क्योंकि फीस देना मेरे लिए ज्यादा जरूरी था।
मैंने कोर्ट मैरिज कर ली
मेरे ऑफिस में एक लड़का मिला जो मुश्किलों और परेशानियों को समझता था। पहले दोस्ती हुई फिर धीरे-धीरे हमारी नजदीकीयां बढ़ने लगी। करीब आने की वजह थी उसका सपोर्ट। जब मुझे मेरी सगी मां का सपोर्ट नहीं मिला उस वक्त वो लड़का मेरे लिए खड़ा था। उसकी इन्हीं बातों से इंप्रेस होकर हम एक रिलेशनशिप में आ गए। हमने एक होने का फैसला कर लिया। दोनों ने अपने-अपने पेरेंट्स को मनाने की कोशिश की जब वो नहीं माने तो हम दोनों ने कोर्ट मैरिज कर ली। मैं एक हैप्पी मैरिड लाईफ एंजॉय कर रही थी। मुझे लगता था कि मुझसे ज्यादा खुशनसीब इस दुनिया में कोई और लड़की नहीं होगी। इतना प्यार करने वाला पति सपना सच होने जैसा एहसास था। लेकिन मेरी खुशी चंद महीनों की ही मेहमान थी।
पति की एक्सीडेंट में मौत हो गई
जब मैं 4 महीने की प्रेग्नेंट थी उस वक्त अचानक मेरे पति की एक्सिडेट में मौत हो गई। ये खबर सुनकर मेरे पैरों तले जमीन निकल गई। हंसती खेलती दुनिया उजड़ गई, मैं क्या करती मुसिबत के वक्त मां फिर याद आई। मैं मां के घर चली गई और उनसे मदद मांगी कि मैं कहां जाऊं लेकिन मेरी मां को उस वक्त भी मेरी हालत पर तरस नहीं आया। मुझे हर बात पर ताना देतीं।
एक दिन मां ने मुझे प्रेग्नेंसी की हालत में बहुत मारा। मेरे पेट पर लातों से मारा और घर से धक्के मारकर बाहर निकाल दिया। उस दिन मैं मार खाकर प्रेग्नेंसी की हालत में गाजियाबाद से दिल्ली तक पैदल चलकर आई। पैर सूज गए। न पानी न खाना प्रेग्नेंसी की हालत में दो दिन तक भूखी रही। रातें डर-डर कर सड़क पर गुजारी। लेकिन कहते है दुनिया में अभी कुछ भले लोग बचे हैं।
डिलीवरी का वक्त मेरे लिए दर्दनाक
मुझे लोगों ने सपोर्ट किया, रहने की जगह दी। मेरा स्ट्रगल जारी रहा। लेकिन डिलीवरी का वक्त मेरे लिए सबसे ज्यादा दर्दनाक था। मैं अकेली, कोई नहीं था मेरा हाथ थामने वाला। दिल्ली के दीनदयाल अस्पताल में गई। उस वक्त मेरी उम्र 19 साल की थी। बिना पिता के बच्चे को पैदा करना लोग मुझे शक की निगाह से देखते कि कहीं कोई और मामला तो नहीं। बिना बाप के बच्चा पैदा कर रही है। बहुत कुछ सुनने को मिला। मैं सुबह 8 बजे अस्पताल पहुंची। दर्द से तड़पने के बावजूद मुझे एडमिट नहीं किया गया। खून बहता रहा मैं लिफ्ट से उपर नीचे करती रही। मेरी वेरिफिकेशन के बाद मुझे 12 बजे दिन में अस्पताल वालों ने एडमिट किया। बेटी हुई, जब मैंने उसे अपने हाथों में लिया तो मुझे वो सब याद आने लगा जब लोग मुझसे कहते थे इस बच्चे को गिरा दो, या पैदा करके बेच दो। मैंने उस मासूम का चेहरा देखा और सोच लिया था की मैं इसे अकेले अपने दम पर पालूंगी। हिम्मत नहीं हारी बेटी की परवरिश की लेकिन बदकिमती ने यहां भी मेरा साथ नहीं छोड़ा।
मेरी जिंदगी मेरी बेटी के इर्द गिर्द घूमती है।
कॉल गर्ल का काम करने को कहा
जब मेरी बेटी 3 महीने की थी तो मेरे मकान मालिक की मौत हो गई। अब रहने का दूसरा कोई ठिकाना नहीं था। उस वक्त एक महिला ने मेरे दर्द को समझते हुए मुझे सहारा दिया। एक दो दिन तो मैं सही से रही लेकिन उन्होंने मुझसे कहा कि अगर यहां रहना है तो कॉल गर्ल का काम करना होगा। बच्ची गोदी में देख उसने प्रॉस्टिट्यूट का काम करके पैसे कमा कर उसे भी देने को कहा, लेकिन मैंने उसे मना कर दिया। वो मुझपर नजर रखने लगी। एक दिन मौका देखते ही मैं वहां से बेटी को लेकर रात के वक्त भाग आई।
बच्ची मां से 9-10 घंटे दूर रहती
मैं एक हॉस्टल में रहने के लिए गई। उनसे कहा मुझे वहां कुछ दिन रहने की जगह दे दें। मैं थोड़े दिनों में किराया देने लगूंगी। तीन महीने की बेटी को डे-केयर में छोड़कर नौकरी करने जाती। छोटी सी बच्ची मां से 9-10 घंटे दूर रहती।
जिंदगी ट्रैक पर धीरे-धीरे आ गई। दोबार फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट में एडमिशन लिया। सैटरडे संडे ऑफिस की छुट्टी रहती थी तो मैं क्लास के लिए जाती लेकिन वो दो दिन मैनेज करना मुश्किल होता था क्योंकि सैटरडे संडे बेटी का क्रच भी बंद रहता था। डर-डर के मकान मालकिन के पास बेटी को छोड़कर क्लास जाने लगी। जैसे तैसे कोर्स पूरा किया। कुछ बेहतर की उम्मीद थी लेकिन उसी वक्त कोरोना ने दस्तक देदी।
बेटी को दूध की बोतल में चीनी का घोल पीलाती
मेरी नौकरी चली गई। घर का किराया खाना बेटी की जरूरतें कुछ भी पूरा नहीं कर पाती। किराए की मांग अलग बनी रहती। कोविड में मुझे घर से निकाल दिया गया। मैंने दूसरी जगह घर लिया, वहां भी सिर्फ दो महीने ही रह सकी। बेटी को दूध पिलाने के भी पैसे नहीं थे। बेटी को दूध की बोतल में चीनी का घोल पीलाती थी। 5-6 दिन मेरी बेटी ने चीनी का घोल पीकर गुजारे। पास में एक पैसा भी नहीं था, पहले से कोई सेविंग भी नहीं थी।
नौकरी की तलाश में धक्के खाए। लोग कोविड की वजह से भगा देते। कोविड के दौरान सुसाइड करने की कोशिश की। लेकिन बेटी का चेहरा देखकर इरादा बदल देती। मैंने फैशन डिजाइनिंग में अपना काम शुरू किया। ऐमाजोन में मेरे डिजाईन सेलेक्ट हुए। आज मैं अपनी बेटी के साथ खुशी खुशी जिंदगी गुजार रही हूं। अब मैं अपना बिता कल याद नहीं करना चाहती बस किसी की नजर न लगे।
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