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There is a hurry to marry a daughter in the middle class; Husband says why earn? Earn and say love you life | बेरोजगार मरना नहीं चाहती: मिडिल क्लास में बेटी ब्याहने की जल्दी; पति कहते कमाना किस लिए; कमाती और कहती हूं लव यू जिंदगी

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4 दिन पहलेलेखक: कमला बडोनी

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सही मायने में जीना बहुत कम लोग जानते हैं। जिंदगी अगर इम्तेहान लेती है तो ये हर इम्तिहान में अव्वल आना जानते हैं। हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों न हों, ये खिलखिलाकर कहते हैं ‘लव यू जिंदगी’। ऐसी ही हैं देसी मॉम सरिता यादव। पत्रकार, पेंटर, ब्लॉगर, इन्फ्लुएंसर इनके कई चेहरे हैं। ‘ये मैं हूं’ आज पढ़िए देसी मॉम की कहानी…

नए शहर में सेटल होना आसान नहीं

मुंबई की पैदाइश और आधी जिंदगी मुंबई में बिताने के बाद दिल्ली जैसे शहर में खुद को एडजस्ट करना आसान नहीं था। खासकर मेरे लिए तब जब फर्क सीधा मायके से ससुराल के बीच का हो। मायका मुंबई में और ससुराल दिल्ली में। ये सिर्फ एक शहर का फर्क नहीं होता बल्कि कल्चर, भाषा, समझ और जिंदगी जीने के मायने तक का फर्क है जहां आप बिल्कुल नए होते हैं और ससुराल में तो आपको हर पल देखा परखा जा रहा होता है। मुझे भी इस दौर से गुजरना पड़ा।

ये जिंदगी का फैसला था

हालांकि मुंबई छोड़कर जाना कभी भी मेरी पसंद में शामिल नहीं था, पर कहते हैं ना जिंदगी अपने फैसले खुद करती है। तो हां, मेरे लिए भी जिंदगी ने कुछ अलग प्लान कर रखा था। मुंबई में शादी के बाद एक बेहद दर्दनाक हादसे ने मेरी जिंदगी पूरी बदल दी। मानो मेरी जिंदगी मेरी रही ही नहीं और फिर किस्मत की लकीरों ने लाकर मुझे दिल्ली में खड़ा कर दिया।

बचपन से क्रिएटिविटी का शौक था

मुझे आर्ट, डिजाइनिंग और नई नई ट्रेंडी चीजों को सीखने और देखने का बड़ा क्रेज था। मैंने घर में ही पर्दों के कपड़े, पुरानी चादरों को काट काट कर स्टिचिंग सीखी। फैशन डिजाइनिंग का बहुत शौक रहा, पर उस समय घर वालों के सामने इस फील्ड को करियर बनाने की ख्वाहिश रखना बड़ा मुश्किल था।

खानदान की पहली ग्रेजुएट लड़की

मेरे खानदान में ग्रेजुएशन तक पढ़ने वाली मैं पहली लड़की हूं। पापा को मुझसे बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन परिवार मेरी शादी जल्दी करवाना चाहता था।

मैं टीवी पर आना चाहती थी

मुझे टीवी पर आने की भी दिली ख्वाहिश थी। चुपके चुपके मैंने स्टार प्लस के एक सीरियल के लिए ऑडिशन फॉर्म भी भर दिया। मेरे फोटोज देखकर मुझे ऑडिशन कॉल भी मिली, पर परिवार के डर ने जाने नहीं दिया।

फैशन डिजाइनिंग की ख्वाहिश रखी तो भाइयों ने ‘ये फील्ड लड़की के लिए अच्छी नहीं होती’ कहकर मना कर दिया।

लेकिन टीवी पर नजर आने का जुनून अंदर ही अंदर बड़ा होता गया। तब जाकर सस्ता और अच्छा कोर्स मिला मुंबई यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म का, जिसके लिए पापा को थोड़ा मनाना पड़ा और सब राजी हो गए। मुझे गणित छोड़कर दुनिया का हर विषय पढ़ना अच्छा लगता।

जर्नलिज्म का डिप्लोमा कोर्स खत्म करते ही लोकल चैनल में जॉब और एंकरिंग करके फाइनली मेरा टीवी पर आने का सपना पूरा हुआ। ६ साल के करियर में मैंने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में दिल लगाकर काम किया।

यूपी में बड़ी होती बेटी खटकने लगती है

यूपी की लड़की २५ साल की हो जाए तो घरवालों से ज्यादा बाहर वालों को उसकी शादी की चिंता सताने लगती है। मेरे साथ भी यही हुआ और फिर मेरे करियर का उगता सूरज धीरे धीरे ढलने लगा।

शादी के बाद शहर बदला

शादी के बाद शहर बदलते ही मेरी जिंदगी, करियर, करियर को लेकर मेरा जुनून और अपना नाम कमाने का सपना चटकने लगा। शुरुआती दिनों में तो लोग और शहर दोनों ही समझ नहीं आते थे। लोग कहते कुछ और, चाहते कुछ और थे।

मैं घर में सिमट गई

शादी के बाद जिम्मेदारियां बढ़ने लगीं। मेरा घर से निकलना आसान नहीं था। बच्चे के जन्म के बाद उसकी परवरिश की जिम्मेदारी शायद हर मां को अपनी सोच बदलने पर मजबूर कर देती है।

करियर मेरे हाथों से धीरे धीरे छूट रहा था

शादी के बाद देखते ही देखते ४ साल निकल गए। किसी भी प्रोफेशनल फील्ड में इतना बड़ा गैप होने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ता है। पर करियर में कुछ करने की इच्छा मेरे अंदर रह रहकर सिर उठाती थी।

फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया

बेटी का प्ले स्कूल स्टार्ट हुआ तो मैंने भी फैशन डिजाइनिंग के कोर्स में एडमिशन ले लिया। साल भर सब ठीक चला, लेकिन जब एग्जाम देने की बारी आई तो सेकंड प्रेग्नेंसी में खराब तबीयत ने फिर मेरी ख्वाहिशों पर विराम लगा दिया।

सरिता यादव, पति और तीनों बच्चों के साथ दिल खोलकर कहती हैं- लव यू जिंदगी!

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हालात मेरे साथ नहीं थे

दूसरी बेटी के जन्म के बाद मैंने फिर से ३ साल तक के लिए मां की ड्यूटी में खुद को व्यस्त कर लिया। फिर जब दोनों बेटियां समझदार हुईं तो उन्हें किसके भरोसे छोड़कर जाऊं यह सवाल खड़ा हुआ? हसबैंड सपोर्टिव तो थे, पर कहीं न कहीं ‘तुम्हें जॉब करने की क्या जरूरत है?’ यह सवाल हमेशा मेरी तरक्की में रोड़ा बनकर खड़ा हो जाता।

मैं अपनी कामयाबी को घर ले आई

मेरी बेटियां भी मेरी कमजोरी थीं जिन्हें आज के जमाने में मैं किसी के भरोसे नहीं छोड़ना चाहती थी। कामयाबी के पास पहुंचना मुश्किल था, इसलिए मैंने उसे घर बुला लिया।

फिर शुरू हुआ मेरा नया सफर। मैंने वुमन प्लेटफार्म पर अपनी कहानियां और पेरेंटिंग से जुड़े वीडियोज बनाने शुरू किए। यहां अलग अलग कॉम्पिटिशन्स में हिस्सा लेना और जीतना शुरू किया। प्राइज के रूप में मिलने वाले पैसे बड़ी संतुष्टि देते थे।

लोग मुझे जानने लगे

मेरा काम लोगों को धीरे धीरे पसंद आने लगा और देखते ही देखते इस प्लेटफार्म ने मुझे काफी शोहरत दिलाई। वीडियो शूट करने से लेकर एडिटिंग पोस्टिंग का तरीका हर टिप्स सीखने के लिए मैंने यूट्यूब का सहारा लिया और न जाने कितनी मांओं को अपने साथ जोड़ा और उन्हें भी सिखाया।

…और मैं देसी मॉम बन गई

मैं महिलाओं और बच्चों से जुड़े वीडियोज बनाती, इसलिए एक मां के रूप में मेरी पहचान बनने लगी। मैंने अपने इस नए प्रोफेशन को और समय दिया और उसे बड़ा बनाया। इंस्टाग्राम पर itsmedesimom के नाम से वीडियोज अपलोड करने शुरू किए।

ब्रांड मुझे अप्रोच करने लगे

मेरे वीडियोज पॉपुलर होने लगे और मुझे काम मिलने लगा। अब मैं ब्रांड्स के साथ जुड़ती हूं जो घर बैठे इनकम का एक अच्छा जरिया बन चुका है। हालांकि मुझे फिक्स इनकम नहीं मिलती, लेकिन काम करने की संतुष्टि के साथ साथ पैसे मिल जाते हैं।

मैंने जरूरत के लिए शादी के बाद कभी काम नहीं किया। पर हां, अपने आत्मसम्मान के लिए कुछ करना है, अपने आपको एक्टिव और अपडेटेड रखना है, इस सोच ने मुझे कभी बैठने नहीं दिया। आज चैन से बैठी हूं क्योंकि मैं अपने मन का कुछ कर रही हूं और कमा भी रही हूं।

मुझे बेरोजगार नहीं मरना

जनवरी २०२४ में मैंने फिर ऑनलाइन फैशन कम्युनिकेशन का कोर्स ज्वाइन किया है। ३८ साल की उम्र में ३ बच्चों की मां हूं और आने वाले समय में फैशन की फील्ड में अपना ब्रांड बनाने की ख्वाहिश रखती हूं, जिस पर दिल लगाकर अभी से काम कर रही हूं। अब ख्वाहिश बस इतनी है कि मुझे बेरोजगार नहीं मरना।

लव यू जिंदगी!

मुझे अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए हमेशा तरसना ही पड़ा है। एक मध्यम वर्गीय लड़की की जिंदगी आसान नहीं होती। ज्वॉइंट फैमिली में रहते हुए अपनी आजाद ख्वाहिशों को परिवार के सामने बताने में भी डर लगता है। मम्मी-पापा के सामने अपनी इच्छाएं कहने की हिम्मत नहीं होती। पर अब जब मेरी छोटी सी पहचान बन गई है, ठीक-ठाक पैसे भी मिलने लगे हैं, तो जिंदगी आसान लगने लगी है। अब मैं दिल खोलकर कहती हूं- लव यू जिंदगी!

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