5 दिन पहले
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लवर्स पार्क की खूबसूरत फिजा थी। फूलों और कलियों पर भंवरे गुनगुना रहे थे। अमलताश के पेड़ों की पीली और गुलमोहर के पेड़ों की लाल छटा मिलकर मन को मुग्ध कर रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे किसी भव्य शादी के समारोह का आयोजन हो, हल्दी और मेहंदी की रस्म एक साथ होनी हो। बहुत से प्रेमी जोड़े इधर-उधर टहल रहे थे।
इस पार्क का भी एक दिलचस्प किस्सा था। शुरू में ये पार्क सभी के लिए था, जैसे सभी पार्क हुआ करते हैं। और जैसा कि होता आया है, प्रेमियों को पार्क के अलावा और कोई जगह तो शहर में मिलती नहीं थी, स्वच्छंद विहार और प्यार के इजहार के लिए। तो उनकी गतिविधि यहां बढ़ने लगीं।
हमेशा की तरह परिवार और बच्चों के साथ आने वालों को ऑब्जेक्शन होने लगा। तब पास ही के एक पार्क को ‘परिवार’ और इसे ‘लवर्स’ नाम देकर अलग कर दिया गया। सानिया और संजय की फेवरेट जगह यही थी।
आज संजय का मूड कुछ ज्यादा ही रोमांटिक था। उसे पता था कि ये सनिया की फेवरेट जगह है। वहां पहुंचकर वो घुटनों पर बैठ गया और जेब से खूबसूरत अंगूठी निकाली।
उसे देखकर सानिया का मन सुखद आश्चर्य से भर गया। कुछ दिन पहले वे ‘शाइनी रोड’ पर विंडो शॉपिंग करने गए थे। वहां बहुत सारी ज्वेलरी शॉप हैं। हर शॉप पर सानिया से संजय उसकी पसंद पूछ रहा था। शो-केस में एक सेट सानिया को बहुत पसंद आ गया। ये उसी की अंगूठी थी।
संजय ने घुटनों के बल बैठकर अंगूठी उसके सामने रखते हुए कहा, “क्या इस जहान की सबसे सुंदर लड़की मेरे जीवन में आकर मुझे धन्य करेगी?”
सानिया को ये पता था कि एक दिन संजय उसे प्रपोज जरूर करेगा, लेकिन उसके इतने खूबसूरत अंदाज ने सानिया का दिल जीत लिया। वो खुद को दुनिया की सबसे खुशकिस्मत लड़की समझने लगी।
‘सम्मोहन’ बैंक्वेट में सानिया के कजिन की शादी का रिसेप्शन समारोह था। वास्तव में अपने नाम को चरितार्थ करता माहौल, बिल्कुल नए अंदाज में सजा स्टेज और स्टेज पर होते मनमोहक कार्यक्रम।
दूल्हा-दुल्हन अभी तक आए नहीं थे। इस समय सबकी नजरें संजय और सानिया पर थीं। इस समय वो परिवार के न्यूली मैरिड कपल जो थे।
“और बताओ, क्या फर्क आया संजय में प्रेमी से पति बनने के बाद?”
“बिल्ली किसने मारी है?”
“सानिया और सासू मां की कैसी जम रही है?” हंसी ठहाको के साथ सबकी बातें सानिया को गुदगुदा रही थीं।
तभी एंकर ने नया गेम अनाउंस किया। “जो कपल एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखे हुए सबसे पहले स्टेज पर पहुंचेंगे, उन्हें प्राइज मिलेगा।” सानिया ने उत्साह में संजय के कंधे पर हाथ रख लिया। दोनों सबसे पहले स्टेज पर पहुंचे तो एंकर ने दूसरी शर्त रख दी।
“अब आपको अपने कंधे पर रखे पार्टनर के हाथ को किस करना है,” ये भी कोई मुश्किल टास्क नहीं थी।
प्राइज में मिली चाकलेट लेकर ‘हुर्रे’ में हाथ हिलाते दोनों नीचे उतर आए।
सासू मां के बगल में आकर बैठी तो उनका पारा चढ़ा हुआ था।
“तुम्हें चॉकलेट इतनी पसंद है तो मुझे कहा होता। मैं फ्रिज भर देती।” आसपास के लोग सुन रहे थे। सानिया को बड़ा अटपटा लगा।
“मम्मी जी, ये तो प्राइज है और प्राइज…”
“किस कीमत पर मिला है ये प्राइज? ऐसी बेशर्मी करके? अरे, अकेले में कौन मना करता है तुम्हें। चाहे जितना चूमो चाटो। पर बड़ों के सामने नई बहू को कुछ तो लाज रखनी चाहिए, ये नहीं सिखाया तुम्हारी मां ने? सिखाएंगी भी कैसे? क्लर्क बाप की पांच बेटियों में से एक हो। पूरी चॉकलेट कभी खाने को कहां नसीब हुई होगी। समझ सकती हूं।”
सानिया पर तो जैसे मनो पानी पड़ गया। ऐसा नहीं कि वो जवाब नहीं दे सकती थी, पर इस समय जवाब देकर झगड़ा खड़ा करने का मतलब था जिन लोगों ने उनकी बात नहीं सुनी थी, उन्हें भी अपना झगड़ा सुनने के लिए इनवाइट कर लेना।
उसकी मम्मी ने भी उसका हाथ थामकर चुप रहने का इशारा किया। वो चुप रह गई।
“छह महीने से मैं इग्नोर कर रही हूं। सासू मां की आदत है मुझे बेइज्जत करने की। कोई भी आता है, उसके सामने मुझे हीन, बेशर्म, आलसी या अनाड़ी साबित करने से नहीं चूकतीं। मैंने प्यार और शांति से उन्हें समझाने की भरसक कोशिश कर ली कि मुझे ये बातें कितनी बुरी लगती हैं। पर वो और आक्रामक हो जाती हैं। पर आज तो हद हो गई। इतनी बड़ी पार्टी में मेरे घर वालों के सामने मेरी तो छोड़ो, मेरे मम्मी-पापा की बेइज्जती! उस पर वहां तुम्हारी चुप्पी।” आज हमें इस बारे में शांति से बैठकर बात करनी ही होगी।
“देखो सानिया, मैंने तो तुम्हें बताया है। जब पापा किसी दूसरी औरत के प्यार में हमें छोड़कर गए तो मैं केवल आठ साल का था। मम्मी ने ही मुझे मां-पिता दोनों का प्यार देकर पाला है। मुझे कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। मैंने मम्मी के दर्द को गहराई से देखा है। मैं उनसे उलझकर उन्हें हर्ट नहीं सकता।
मैं मानता हूं कि तुम्हारी बात सही है और इसके लिए मैंने उन्हें समझाने की भी कितनी कोशिश की है, तुम खुद गवाह हो। पर वो हमारी बातों को दिल पर लेकर कितनी दुखी हो जाती हैं। कहीं मैं भी उन्हें छोड़ न जाऊं, इस बात की असुरक्षा उनके मन में भरी है।
चलो, हमेशा की तरह मैं उनकी ओर से तुमसे माफी मांगता हूं।” कहकर संजय ने प्यार जताना शुरू कर दिया।
“बात सिर्फ इतनी सी नहीं है, संजय। उन्हें हर दिन कोई न कोई चुभने वाली बात कहनी ही होती है और हर हफ्ते किसी बात का बतंगड़ बनाना ही होता है। और तुम इन सबके खामोश गवाह बनकर इसे सपोर्ट करते हो। यही नहीं, मुझे भी बोलने से मना करते हो। ये सब मेरे मन में कहीं न कहीं तनाव बनकर जमता भी जा रहा है। समझा करो।”
कुछ देर सानिया का मूड सही नहीं होता देख वो बोला, “अच्छा वो सब छोड़ो। देखो, मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारी पसंद की वेबसाइट से कितने अच्छे इयरिंग्स शॉर्टलिस्ट किए हैं। इनमें से एक चुनो।” सानिया हमेशा की तरह निरुत्तर रह गई।
सानिया को संजय के प्यार पर गर्व था। वो हर मामले में अच्छा था। अक्सर मजाक में कहता, “मैं तुम्हारा एकाउंटेंट कम शोफर कम सेक्रेटरी सब कुछ हूं और सच में सानिया की घर बाहर की हर प्रेक्टिकल प्रॉब्लम का सेल्यूशन था वो। यही नहीं, जैसी आम पतियों की छवि होती है चुटकुलों वगैरह में, उससे बिल्कुल उलट संजय को हर महत्त्वपूर्ण डेट याद रहती।
खास मौकों पर बड़े रूमानी अंदाज में कोई गिफ्ट और पार्टी देना भी वो न भूलता। जब कभी सासू मां का व्यवहार और उस पर संजय की चुप्पी बरदाश्त से बाहर हो जाती; वो इसे उसकी मजबूरी समझ खुद को समझा लेती। संजय का बेइंतेहा प्यार ही उसकी जुबान बांध देता था।
तभी जीवन में नई चुनौती आई। कॉस्ट कटिंग ऑफिस में छटनी लाई और सानिया की नौकरी चली गई।
“ऐसे उदास न हो। मैं हूं न! वैसे भी कहता था तुम्हें जॉब की क्या जरूरत है। नियम से कुछ पैसे तुम्हारे एकाउंट डाल दिया करूंगा। तुम समझ लेना कि तुम्हारी जॉब कहीं नहीं गई।” संजय ने उसे खुश करना चाहा। पर सानिया की सबसे बड़ी समस्या तो सासू मां के साथ सारा दिन काटना था।
कजिन नीना से एक सुझाव मिला। शोशल मीडिया पर अपने सब्जेक्ट के ट्यूटोरियल देने का काम शुरू करने का जो सानिया को भा गया। सब इंतजाम हो गए। कैमरा ऑन हुआ और सानिया का लेक्चर शुरू।
पर ये क्या। अपने ही नहीं, किसी भी टॉपिक पर धाराप्रवाह बोलने में एक्स्पर्ट सानिया आधे मिनट भी बिना किसी गड़बड़ी के कैमरे के सामने बोल नहीं पाई। नीना ने कहा था कि रिकोर्डिंग हो जाए तो उसे बुला ले। वो एडिटिंग कर भी देगी और आगे के लिए सिखा भी देगी। उसे भी फोन करके मना करना पड़ा।
अब तो ये रोज का क्रम हो गया। सानिया को याद आने लगा उसका कॉलेज का बहिर्मुखी व्यक्तित्व। मजाल है जो स्टेज पर या कैमरे के सामने आधे घंटे भी रहना पड़ जाए तो एक बार भी अतक जाए।
दंसवें दिन नीना आ ही धमकी। “कहां हो? क्या हुआ? दस दिन से तुमारी रिकॉर्डिंग ही नहीं हुई?” सानिया ने मोबाइल सामने कर दिया। तभी सासू मां कमरे में आ गईं और शुरू हो गईं।
वो चली गईं तो नीना हैरान सी बोली, “तू इतना सब सुन कैसे लेती है?”
“अरे कुछ नहीं यार, उनकी आदत है। मुझे फर्क नहीं पड़ता और फिर तेरे जीजाजी का प्यार…”
“प्यार या व्यापार?” नीना गुर्रा उठी। “ये जो तेरी पर्सनालिटी डिटियोरेट हुई है ये उसी फर्क पड़ने का असर है, जिसका तुझे सीधे से पता नहीं चल रहा।”
बात सही थी, दिल की गहराइयों से जानती थी सानिया।
“कहां की तैयारी?” सानिया का बैग-पैक देख संजय ने पूछा।
“तुम्हें और सासू मां को अकेले में सोचने का वक्त देने की।”
“क्या मतलब?”
“मैं सासू मां के साथ नहीं रह पाउंगी। परिवार के किसी फंक्शन में अगर वो जाएंगी तो मैं नहीं जाउंगी। मैंने तय कर लिया है। तुम्हें दोनों में से एक का चुनाव करने का मौका देना चाहती हूं।”
संजय स्थिति की गंभीरता को समझ गया। करीब आकर रूमानी अंदाज में गुनगुनाना शुरू किया, “कोई शर्त होती नहीं प्यार में…”
पर सानिया आज पहले से तैयार थी। सुर में सुर मिलाकर उसने गाना आगे बढ़ाया, “मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया। संजय! प्यार तो मैं भी तुमसे बहुत करती हूं, लेकिन अगर तुम्हारा बेइंतेहा प्यार पाने के लिए ये शर्त है कि मुझे इतना बेइज्जत होना पड़ेगा जिससे मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो जाए, तो वो पैकेज मुझे नहीं चाहिए।
प्यार संवारता है, निखारता है, पर तुमने भी मुझे प्यार शर्तों पर ही दिया है, तो बदले में वही मिलेगा। देर से तय की है, पर मैं अपनी भी शर्त तय कर चुकी हूं।”
सानिया खोया आत्मविश्वास पाने की दिशा में बैग लेकर कदम खटखटाती जा रही थी।
– भावना प्रकाश
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