8 दिन पहले
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“यार मुझे अफसोस हो रहा है, क्यों पढ़ाई के चक्कर में पड़ी, वह भी मेडिकल की। भरी जवानी दस दस किलो की किताबों में सिर खपाने में बरबाद हो रही है। बुढ़ापा आ जाएगा डिग्री मिलने तक, मेहंदी हाथों के साथ साथ बालों में भी लगाना पड़ेगी लगता है।”
त्विशा की बात पर तारुष कुछ जवाब देता इससे पहले ही उसकी नौकरानी रंजना बोल पड़ी, “बात तो आपकी ठीक ही है दीदी। मेरी लड़की भी पढ़ाई नहीं कर रही। मैंने डाँटा भी कि बारहवीं बोर्ड है इस साल तो बोली, देखो अम्मा, वह 12th फेल मनोजवा कलेक्टर लग गया और अगर मैं पास भी हुई तो क्या मिलेगा? पास हुए तो फिर 13, 14, 15वीं की परीक्षा दो और फिर मिलेगा नौकरी वाला पति।
12 घंटे की नौकरी और तनख्वाह 15-20 हजार। फिर मुंबई-पूना जैसे बड़े शहरों में रहने जाओ। वहां किराए का घर होगा जिसमें आधी तनख्वाह चली जाएगी। फिर अपना खुद का घर चाहिए तो लोन लेकर 4-5 मंजिल ऊपर घर लो और एक गुफा जैसे बंद घर में रहो। लोन चुकाने में 15-20 साल लगेंगे और बड़ी किल्लत में गृहस्थी चलेगी।
न त्योहारों में छुट्टी न गर्मी में। सदा बीमारी का घर। स्वस्थ रहना हो तो ऑर्गेनिक के नाम पर 3-4 गुना कीमत देकर सामान खरीदो। और फाइनली वह नौकरी करने वाला नौकर ही तो होगा। अम्मा, तुम सारा जोड़-घटाना गुणा भाग कर लो, समझ में आ जाएगा।
और अगर परीक्षा में फेल हो गई तो किसी खेती किसानी वाले किसान से ब्याह होगा। जीवन थोड़ा तकलीफदेह तो होगा, पैसे कम ज्यादा होंगे लेकिन सारे अपने होंगे, कोई टेक्स का लफड़ा नहीं। सारा कुछ ऑर्गेनिक उपजाएंगे और वही खाएंगे। बीमारी की चिंता फिक्र ही नहीं, पति 24 घंटे अपने साथ ही रहेगा। और सबसे बड़ी बात हमारा सारा लोन सरकार माफ कर देगी।”
रंजना की बात पर वे दोनों भी हँसे बिना न रह सके। कोई और समय होता तो त्विशा गर्ल्स एजुकेशन पर लंबा-चौड़ा लेक्चर दे मारती। पर आज मूड नहीं था। वह अपने सबसे अच्छे दोस्त की शादी में आई हुई थी।
“खैर, अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत।” तारुष ने उसे कोहनी मारी।
“अच्छा मतलब तू खेत है और श्रेया चिड़िया।” त्विशा ने उसे पलटकर कोहनी मारी।
“अच्छा मतलब तू सच में पछता रही है।” तारुष की बात पर इस बार उसने तकिया खींचकर मार दिया।
“अरे दीदी, भैया रूम का कबाड़ा मत कीजिए, हम अभी सफाई करके, सब चीज जमाकर गए हैं।” बाहर से रंजना के चिल्लाने पर दोनों सीधे होकर बैठ गए।
“सच बताऊँ यार, आई एम सो ग्लैड, तूने यहां आने का टाइम निकाला। मुझे तो लग रहा था क्या पता, डॉक्टर साब इस गरीब इंजीनियर की शादी में आएंगे कि नहीं।” तारुष मुस्कुरा रहा था।
“ओय, इलेक्ट्रिक वाले हमारे यहां बल्ब वल्ब बदलने, फ्रिज एसी सुधारने का काम करते हैं।” त्विशा ने फिर चिढ़ाया।
“हां और वह भी ठीक से नहीं कर सकते। इलेक्ट्रिशियन को ही बुलाना पड़ता है या नया लाना पड़ता है।” तारुष पर कोई असर नहीं हुआ।
“वाह भाईसांप वाह, कितना सही पहचाना है खुद को।” त्विशा ने ताली बजाई।
“ये भाई-सांप बढ़िया था गुरु। वैसे हम न भाई हैं न सांप।”
“तो डस डसकर क्यों मार रहा है बोरियत से, कुछ खिलाएगा नहीं क्या, भूख से पहले ही मर रही हूं।”
“हां, हां चल। मॉल चलते हैं। श्रेया के लहँगे का ट्रायल भी लेना है और मेरी शेरवानी भी सिलेक्ट करनी है। वहीं पहले कुछ खा लेंगे।”
“लो, मैडम ख़ुद से लहंगा भी सिलेक्ट नहीं कर पा रहीं। दूल्हा कैसे सिलेक्ट कर लिया।” त्विशा ने आंखें घुमाईं।
“उसने नहीं किया। अरेंज्ड है। पोर्टफोलियो पसन्द आ गया दोनों की फैमिलीज को।
“ओह…माय…गॉड…. तारुष भटनागर और अरेंज्ड मैरिज। यह तो गजब ही हो गया। यूं तो इतनी बड़ी-बड़ी बातें किया करता था। और मैं इतनी दूर से तेरी लव स्टोरी सुनने आई हूं। धोखा हो गया जी। खैर, जो हुआ सो हुआ।” त्विशा ने निराश होते हुए कहा।
“अबे बधाई दे, सांत्वना नहीं।” तारुष ने बुरा सा मुंह बनाया।
“हां, हां तुझे बधाई, श्रेया को सांत्वना।”
बहुत सारी शॉपिंग के बाद दोनों वेडिंग सेक्शन में लहँगा और शेरवानी पसन्द करने लगे।
“यार, एक बात बोलूँ, चाहे मजाक उड़ा ले या ओल्ड स्कूल कह ले, लेकिन रूखी-फीकी दुल्हनें मुझे नहीं पसन्द। अभी जो ट्रेंड चला है क्रीम, बेज, पीच, सब दुल्हनें एक जैसी लगती हैं। और ये पण्डित जी कौनसे जोक्स सुनाते हैं, सब एक जैसे बुक्का फाड़े हँस रहे होते हैं। दुल्हन तो सुर्ख़ जोड़े में ही सजती है। रेड-मरून के चटख शेड्स। ख़ैर मुझे छोड़, श्रेया को कैसा पहनना है, यह उस पर है। बता किस शेड में देखना है।” त्विशा जब से आई थी, पहली बार सीरियस हुई थी।
“रेड-मरून। यही शेड्स चाहिये।” तारुष ने कहा।
थोड़ी देर में एक लहँगा लेकर त्विशा ट्रायल रूम में गई। जब वह उसे पहनकर बाहर आई, और आईने में ख़ुद को देखा, तो एक पल को तो वह ख़ुद को ही पहचान ही नहीं पाई। बिना मेकअप भी दुल्हन ही लग रही थी। पीछे से मैचिंग शेरवानी पहने तारुष आया तो आसपास वाले भी ठिठककर उन्हें ही देखने लगे।
“एब्सॉल्यूटली ड्रॉप डेड गॉर्जियस मैम, रॉयल सर, यू बोथ कॉम्प्लिमेंट ईच अदर। एकदम महाराज-महारानी लग रहे हैं।” सेल्स गर्ल की तारीफ़ प्रोफेशनल से ज़्यादा दिल से की गई लग रही थी।
पता नहीं क्यों त्विशा की ज़ुबान एकदम से बन्द हो चुकी थी। कोई चिढ़ाना, कोई छेड़छाड़, कोई फनी कमबैक नहीं। पहले वह थोड़ी शरमा गई फिर एम्ब्रेसिंग मोमेंट से बचने के लिये वह वापस ट्रायल रूम जाकर लहँगा उतार आई।
“एक्सक्यूज़ मी।” कहकर वह वॉशरूम में घुस गई। न जाने क्यों आँसू उसकी आँखों से टप टप टपके जा रहे थे। वह रोना नहीं चाहती थी पर चुप भी नहीं हो पा रही थी।
बचपन से अब तक का समय उसकी आँखों के सामने घूम गया। तारुष उसका सबसे अच्छा दोस्त था। वे स्कूल फ्रेंड्स थे पर उनके रास्ते तब अलग हुए, जब तारुष ने इंजीनियरिंग और त्विशा ने मेडिकल में एडमिशन ले लिया। आज सात साल बाद वे मिल रहे थे। फोन, व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टा पर गाहे-बगाहे टच में रहते थे पर दोनों ही अपनी-अपनी ज़िन्दगियों में बिज़ी थे। एक बार उसने यूँ ही पूछ लिया था, “इतना झल्ला सा तो है तू, तुझसे शादी कौन करेगी?”
इस पर तारुष ने जवाब दिया था, “कोई और नहीं मिली तो तुझ से कर लूँगा।”
ज़ाहिर है, तारुष ने यह बात मज़ाक़ में कही थी, जो कि वे दोनों हमेशा से ही करते आए थे लेकिन न जाने क्यों यह बात त्विशा को हर्ट कर गई थी। उस दिन के बाद से उनका कॉन्टेक्ट धीरे-धीरे कम होता हुआ ख़त्म सा हो गया था।
पर आज जब उसने दुल्हन का लहँगा पहना, तब सही मायनों में उसे समझ आया था कि दरअस्ल वह चाहती थी कि तारुष उसे चाहे, उसे पसन्द करे, उसे प्यार करे और उसे ऑप्शन नहीं समझे, पहली चॉइस बनाए। उसे तारुष से प्यार है। उफ़्फ़ यह एहसास अब क्यों होना था।
“क्या करूँ, मैं क्या करूँ। अगर तारुष से अपने प्यार को कन्फेस करती हूँ, तो वह भी या तो अपनी फीलिंग्स कन्फेस कर लेगा कि वह भी उसे चाहता है। फिर या तो वह यह शादी तोड़ देगा, जो कि श्रेया के साथ अन्याय होगा, या वह प्यार तो स्वीकार कर लेगा लेकिन शादी नहीं तोड़ेगा और भारी मन से दो हिस्सों में बंटा हुआ दूल्हा बनेगा या वह साफ़ मना कर देगा कि उसके दिल में त्विशा के लिये कोई फीलिंग्स नहीं हैं।
नहीं, नहीं। मैं इतनी स्वार्थी नहीं हो सकती। प्यार सिर्फ़ पाने का नाम नहीं है। अपने प्यार की खुशी में ख़ुश रहने का है। काश! उसने देर न की होती और समय रहते बता दिया होता। लेकिन अब पछताए होत क्या….” उसने बहुत देर तक मुँह पर छपाके मारे, फ्रेश मेकअप किया और बाहर आ गई।
“क्या हुआ डॉक्टर साहब, पेट ख़राब हो गया बाहर के खाने से क्या।” तारुष एकदम नॉर्मल था जबकि त्विशा न जाने क्यों यह उम्मीद कर रही थी कि तारुष भी उदास हो, न जाने क्यों।
ख़ैर जब उसने देखा कि तारुष को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा है तो उसे अपना फ़ैसला सही ही लगा। उसकी शादी है दो दिन बाद और उससे कुछ भी कहना अपनी ही इज़्ज़त गिराना है।
रूम पर आकर वे पैकिंग करने लगे। जैसलमेर में डेस्टिनेशन वेडिंग थी। वैसा ही जैसा उसका सपना था। और इसी वजह से वह एक हफ्ते की छुट्टी लेकर आई थी। लेकिन अब जब अपने प्यार को खोने का एहसास गहरा हुआ था तो सारा एक्साइटमेंट ख़त्म हो चुका था और उसकी जगह एक चुप्पी और उदासी ने ले ली थी लेकिन तारुष इतना ख़ुश और बिज़ी था कि उसने कुछ नोट ही नहीं किया।
जैसलमेर पहुँचकर वे अपनी होटल जाने की बजाय एयरपोर्ट से सीधा ऐसी जगह पहुँचे, जहाँ दूर-दूर तक बस रेत ही थी।
वहाँ ऊंटों के एक काफिले के पास श्रेया उनका इंतजार कर रही थी। त्विशा इसके लिये तैयार नहीं थी। वह श्रेया से ऐसे इस तरह नहीं मिलना चाहती थी।
लेकिन श्रेया उसका हाथ पकड़कर उसे अपने साथ ले गई।
“हाय त्विशा। मैं अकेले में तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ। मैं जानना चाहती हूँ, तारुष किस तरह का लड़का है। देखो झूठ मत बोलना, तुम उसकी बचपन की दोस्त हो। यह मेरी ज़िंदगी का सवाल है। प्लीज़ बी ऑनेस्ट।”
अब त्विशा को लगा, यह सही मौक़ा है। अगर वह श्रेया के दिमाग में शक के बीज बो दे, तारुष की इमेज खराब कर दे या उससे भी सेफ, इनडायरेक्टली इशारा कर दे कि उन दोनों के बीच कुछ है तो यह शादी टूट सकती है।
उसने कहा,”तारुष हज़ारों, लाखों, करोड़ों में नहीं, बस एक है। एक ही है। उसके जैसा कोई है ही नहीं। वह तुम्हें बहुत खुश रखेगा। तुम दुनिया की सबसे लकी दुल्हन हो। ऑल द बेस्ट।”
यह कहकर वह आँसू छिपाती उठकर चली गई। वह अपने इकलौते बेस्ट फ्रेंड और प्यार के साथ ऐसा कैसे कर सकती थी। उसका घर कैसे तोड़ सकती थी।
“त्विशा क्या तुम तारुष से प्यार करती हो?” श्रेया के इस सीधे सवाल पर उसे एकदम से करंट लगा। वह मना करना चाहती थी, लेकिन आवाज़ निकल नहीं रही थी। वह हाँ करना चाहती थी, पर कर नहीं पा रही थी।
“त्विशा तुम्हें तारुष की कसम। सच बोलो।”
“हाँ। हाँ करती हूँ उससे प्यार मैं श्रेया। बहुत प्यार करती हूँ। लेकिन तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। वह नहीं जानता यह बात। उसे कुछ पता नहीं है, तो तुम मेरी तरफ से बेफिक्र रहो, मैं कभी तुम्हारे रास्ते में नहीं आऊंगी। मैं तारुष को कभी नहीं बताऊंगी।” त्विशा हिचकियों से रोते हुए अपना मुँह घुटनों में दिये ज़मीन पर बैठ गई थी।
“हाँ ज़रूर। तारुष तो बेवक़ूफ़ है, डंब है, उसे क्या ही पता होगा, वह तो कुछ समझता ही नहीं।” अबकी बार ये आवाज़ श्रेया नहीं, तारुष की थी।
त्विशा की आँखें फटी की फटी रह गई थीं। अब क्या होगा, उसकी बेवकूफी से बहुत तमाशा होगा, वह यही सोच रही थी।
“कोई नहीं मिलेगी तो तुझसे कर लूँगा इसीलिये कहा था इडियट कि कोई मिल ही नहीं सकती तुझ सी मुझे। बुरा लगा था तो बताना था न। अब भी कितने धत करम करना पड़े उगलवाने को। शादी का कार्ड छपवाकर भेजा तुझे, आई मीन, सिर्फ़ तुझे। दो दिन रूम पर ट्राय किया उगलवाने, मॉल में लहँगा ख़रीद लिया, दुल्हन को पता ही नहीं था जबकि। और यहाँ तक आना पड़ा।”
“फिर, फिर ये सब, ये श्रेया….”
“अरे यह रंजना दीदी की बेटी श्रेया है। इसी का फोटो भेजा था। वही, जिसे किसान चाहिये। और बारहवीं फेल नहीं है यह नर्सिंग का कोर्स कर रही है। इसीलिये मदद को तैयार भी हो गई। थैंक्यू डियर सिस्टर।”
श्रेया हँसते हुए उन दोनों को अकेला छोड़ गई।
“सो, यहीं डेस्टिनेशन वेडिंग कर लें कि घर वालों को भी इनवाइट करना है।” तारुष ने शरारत से उसे देखा।
अब तक त्विशा पैरों से सैंडिल उतारकर हाथों में ले चुकी थी। तारुष बचाव की पोज़िशन में आ चुका था, लेकिन वह दौड़कर आई और अब तक तारुष से लिपटकर उसे अपने साथ लिए रेत में गिरा चुकी थी।
“तुम जानते थे…”
“हमेशा से। बस तुम्हारे मुँह से सुनना था।”
“तो सुनो। आई लव यू।”
“एंड आई लव यू। हमेशा से, हमेशा के लिये…”
– नाज़िया खान
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